Mar 13, 2008

वास्तविकता

बरसों पहले डाइरेक्टर नामका, एक शिकारी रहता था।
उच्च नस्ल के उत्तम कुत्ते, अपने साथ वो रखता था।
कोई ए यम, कोई डी यम, किसी को मॅनेजर कहता था।
एक शिकार भी बच ना पाए, ऐसा दम वो भरता था।

जिम कारबेट के साथ एक दिन, निकल गये जंगल की ओर।
कम आन डी यम, अटैक मैनेजर, डाइरेक्टर है करता शोर।
एक भी जानवर बच ना पाया, शेर चीता भालू या मोर।
बड़ा प्रभावित हुआ जिम कारबेट, देख सभी कुत्तों का ज़ोर।

बरसों बाद पुनः करबेट, भारत में एक अवॉर्ड लेने आया।
डाइरेक्टर के साथ फिर से, शिकार का प्रोग्राम बनाया।
सारे दिन खपने के बाद, एक भी जानवर मार ना पाया।
बोला अब तुम्हारा मैनेजर, क्यों नहीं दौड़ता डाइरेक्टर भाया।

क्या करूँ भाई, ग़लती मेरी है, डाइरेक्टर जी फरमाते है।
वो पुराने सारे मैनेजर अब, जनरल मैनेजर कहलाते है.
बंद कमरों में बैठ सारे दिन, ये अब केवल गुर्राते हैं।
उम्र हो गयी दौड़ ना पाएँ, मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाते हैं।

तेज तर्रार ब्रीड के पिल्ले, हमने आई आई टी से मँगवाए.
शिकार खेलने गये जंगल में, नहीं लौट कर आए.
खुंदक खाकर देसी पिल्ले, खूब सारे भरवाए.
ये घर पड़ोस में शिकार सूंघते, जंगल जाने से घबराए.

फिर सोचा मैं रख लेता हूँ, कुछ बिल्लियाँ सत्तर अस्सी.
शिकार होंगे खुद ही नतमस्तक, समझ इन्हें शेरों की मौसी.

नसीहत पर अमल

स्वामी रामदेव के कॅंप में पहुँचा, सुना बड़ा नाम था।
आँखें तेज करनी है भगवान, चश्मे को देना आराम था।
नज़र घुमाना बाएँ से दाएँ, करना बीस बार सुबह और शाम था।
छाणिक विराम के बाद फिर, लगाना भास्त्रिका प्राणायाम था।

अगले ही सप्ताह, फॉरेन प्रॉजेक्ट के लिए प्रस्थान हुआ।
प्रातःकाल दुबई एआर्पोर्ट पर, मेरे प्राणायाम का शुरुआत हुआ।
सिद्धासन मुद्रा में जा, नज़रें दाएँ-बायें घुमाना दस बार हुआ।
तभी यकायक एक अरबी शेख का, जोरदार मुष्टिका प्रहार हुआ।

दाएँ बाएँ इशारे कर, उसकी उंगलियाँ कुछ दिखलाती थी।
दाँयी तरफ टायलेट और बाएँ, उसकी चार बिबीयाँ नज़र आती थी।
मेरी आसन में घूमती आँखें, शायद उसे अर्थ यही समझाती थी।
की मेरी नज़रें दायें-बायें होकर, बिबीयों को टायलेट में बुलवाती थी.