सदा की भाँति क्षीर सागर में नाग शैया पर लेटे हुए विष्णु भगवान का पैर दबाते हुए लक्ष्मीजी ने पूछा, “भगवन आपको सबसे अधिक प्रिय कौन है?”
उन्होने सोचा प्रभु मेरा ही नाम लेंगे। मगर नारायण कहीं दूर शून्य में निहाराते हुए बोले, ”मानव लोक के आर्यावर्त में गंगा-यमुना क्षेत्र मुझे सबसे प्यारा है। अवधपुरी की मिट्टी में मैं राम बनकर खेला कूदा हूँ। ब्रजभूमि की अमराइयों में कितने माखन चुरा कर खाए, कितनी रास लीलाएँ रचाईं. यही नहीं मेरे इष्टदेव भोले विश्वनाथ जी भी वहीं काशी में निवास करते हैं. हम दोनो ही भगवान, एक विश्व का पालनहार और दूसरा विध्वंसक, वहीं के हैं“.
" ऐसी क्या खास बात है इस मिट्टी में“, लक्ष्मी जी ने जल भुन कर कहा.
प्रभु ने कहना जारी रखा, “देवी, यह भूमि अत्यंत ही लुभावनी है। यहाँ मैने रामराज्य स्थापित किया था। चारो तरफ शांति और प्रेम का वातावरण है। तुलसीदास एवं सूरदास ने हमारा वर्णन कर करके लोगो को धार्मिक बना दिया है। अधर्म का नामोनिशान नहीं है”.
लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया,”अब वहाँ पर किसका राज है?”
“ये तो मुझे नहीं पता” विष्णु बोले,”सैकड़ों वर्ष पूर्व मैने अपने संवाद-दाता नारद मुनि को दीर्घ अवकाश पर भेज दिया था। उनके पास सुनाने के लिए कुछ भी नया समाचार नहीं होता था”.
लक्ष्मी जी ने आग में थोड़ा घी डाला,“मगर प्रभु यह तो ठीक बात नहीं है। आपको अपने लोगो की खोज खबर लेनी चाहिए. आप अपने संवाद-दाता को एक बार पुनः बुलाए“.
"शायद आप ठीक कहती हैं नारायानी“। कहते हुए प्रभु ने नारद मुनि को तरंगों का आकस्मिक संदेश प्रेषित किया.
तभी दूर क्षितिज पर कोई आकृति नज़र आई. पास आने पर मुश्किल से पहचाना. मुखारविंद तो नारद का था, मगर वेश भूषा अत्यंत विचित्र. सर के बड़े बाल कट चुके थे। शर्ट और पतलून पहन रखा था. हाथ में मजीरा और वीणा की जगह नोटबुक वा कलम पकड़ रखा था. कान पे हेडफ़ोन लगा हुआ था.
विष्णु ने कहा,”नारद मुनि ये आपने क्या हाल बना रखा है? रंगमंच पर पाताल-लोक के किसी विचित्र प्राणी का अभिनय कर रहे थे क्या? सर के ऊपर लौह धातु की छतरी उलटी क्यों धारण की हुई है ? ”
नारद ने ‘नारायण नारायण’ की जगह कहा,”एक्सक्लूसिव, एक्सक्लूसिव। हे 'देवलोक लिमिटेड' के 'चेयरमैन एंड मॅनेजिंग डाइरेक्टर', मुझे आपकी कंपनी से 'वी आर एस' चाहिए. मेरे पास इस समय दस सेटिलाइट चैनेलों के लिए एक्सक्लूसिव रिपोर्टें भेजने का आफर है. मैं इतिहास का सबसे पुराना रिपोर्टर हूँ. आप मेरा समय नष्ट ना करें. तुरंत 'वी आर एस' के साथ पिछले पाँच हज़ार वर्षों का वेतन भी मेरे बॅंक आकाउंट में ट्रान्स्फर कीजिए। मेरे सर के ऊपर लौह धातु की छतरी नहीं डिश एंटीना लगा है, उपग्रह से डायरेक्ट एक्सक्लूसिव तसवीरें भेजने के लिए । नमक मिर्च मसाला लगा कर समाचार सुनाने का मेरा पुराना फार्मूला सभी रिपोर्टरों ने चुरा कर बहुत पैसे कमा लिए हैं । और मैं हजारों वर्ष से लॉन्ग लीव पर बैठा मक्खी मार रहा हूँ" ।
विष्णु-जी भौचक्के उठ कर बैठ गये। लक्ष्मीजी का हाथ अपने पैरों से हटाते हुए कहा,” नारद-जी आप ये क्या अनाप शनाप प्रलाप कर रहे हैं? हमारी अवधपुरी और ब्रज भूमि का क्या समाचार है? लोग पूजा पाठ करते हैं या नहीं? सभी देवी देवताओ में सबसे ज़्यादा मूर्तियाँ किसकी है? राम, कृष्ण, शंकर-जी, दुर्गा या मेरे भक्त हनुमान की?”
नारद ने कहा,” इनमे से किसी की भी नहीं। सबसे ज़्यादा मूर्तियाँ मायावती और काशी-राम की हैं”.
विष्णूजी का मुख खुला रह गया,”वत्स, ये किनके अवतार हैं? हममे से तो किसी देवता ने अपना तेज देकर कोई अवतार मृत्युलोक में नहीं भेजा। खैर ये बताइए वहाँ के लोग तो अत्यंत ही बलशाली होंगे. गंगा की अमृत धारा पीकर तो लोग चट्टान की तरह बलिष्ठ एवं निडर होंगे”.
नारद-जी बोले,”आपका न्यूज नेटवर्क बहुत कमजोर है। ये लीजिए मैं आपको गंगा की एक्सक्लूसिव कवरेज दिखलाता हूँ”.
यह कहकर नारद-जी ने अपना लॅपटॉप निकाला। वाई फ़ाई से कनेक्ट करके 'गंगा' सर्च मारा तो एक गंदा नाला बहता हुआ नज़र आया, जिसमें बहुत सारे सुअर लोट रहे थे। कुछ भैंसे बाहर किनारे पर खड़ी थीं मगर अंदर घुसने की हिम्मत नही हो रही थी.
नारद-जी ने कहा,”यही है आपका गंगा-मृत। भैंस भी इसका पानी नहीं पी रहीं है। 'आर ओ' भी इसको सॉफ नहीं कर पाएगा“.
विष्णूजी ने अपना सुदर्शन चक्र नीचे रखते हुए बेचैनी से पहलू बदला,”मुनिवर, तो क्या वहाँ के लोग गंगाजल पीकर बलिष्ठ एवं पराक्रमी नहीं हुए? हमारे मार्गदर्शन से तो उन्होने समग्र विश्व में कीर्तिमान स्थापित किया होगा?”
नारद जी पुनः आग उगलते हुए बोले,”अपने ही देश के मुंबई में उनको भैया बोला जाता है”।
विष्णूजी अत्यंत प्रसन्न होकर बोले,” मैं जानता था। भैया तो ज्येष्ठ भ्राता का ही अपभ्रंश है. और क्या-क्या सम्मान मिलता है उनको?”
नारद-जी उग्र होकर बोले,”अरे क्या कूप मंडूक की तरह इस क्षीर सागर में पड़े हुए हैं आप। बाहर निकल कर देखिए. मुंबई में भैया एक गाली के समान है और उनको मार मार कर भगाया जा रहा है. यू पी का होना गुनाह है”.
पालनहार प्रभु ने पूछा,”यू पी का वृहद्-अर्थ क्या है मुनिवर?”
“यू पी का मतलब है उत्तर प्रदेश। कुछ लोग प्यार से 'उल्टा पुल्टा प्रदेश' या 'उल्लू का पट्ठा' भी बोलते है”।
महात्मा बुद्ध और महावीर, जो वहीं नीचे जल समाधि में लीन थे, सतह के उपर नज़र आए और बोले,”इसीलिए हमने हिंदू धर्म की कुरीतियों को दूर करने के लिए नये संप्रदाय बौध और जैन चलाए। हमारे स्थान कपिलवस्तु व पाटलिपुत्र अवश्य ही काफ़ी समृद्ध होंगे.”
लक्ष्मीजी ने भी उनका साथ दिया,” हाँ मैं भी वहीं मिथिला की हूँ। वहाँ की मिट्टी से तो मेरी जैसी देवियाँ निकलती हैं, जब लोग खेत में हल चलाते हैं। वहाँ तो अब सभी लोग देवी देवताओं की तरह सुसंस्कृत एवं सज्जन होंगे ?”
तभी एक अश्वारोही सागर की लहरों के ऊपर भागता हुआ आया। पास आने पर दिखा वो भारतवर्ष के महानतम सम्राट आशोक थे। अभिवादन के पश्चात् उन्होंने भी सुर मिलाया, "महामहिम, मगध का साम्राज्य तो मैंने ही सुदूर कलिंग तक पहुँचा दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय सरीखे उच्च शिक्षा केन्द्र तभी विकसित थे, जब पाश्चात्य देशों में प्राथमिक पाठशालाएं भी नहीं थीं। अब तो वहां के लोग समग्र भूमंडल के मूर्धन्य विद्वान् होंगे"।
नारद-जी अत्यंत क्रुद्ध हो गये, ”अरे इन सब जगहों को मिलाकर उसे आजकल बिहार कहा जाता है। वहाँ से ज़्यादा ग़रीबी और भ्रष्टाचार कहीं नहीं है। पूरे भारत में सबसे ज्यादा जाहिल, अनपढ़ तथा क्रिमिनल वहीं पर हैं। एक विदूषक वहां अब तक का सबसे सफल शासक रहा है ”.
सारे देवता सुनकर सन्नाटे में आ गये। किसीसे कुछ बोला नहीं जा रहा था।
तब नारद-जी ने पुनः कहना प्रारंभ किया,“आप सभी भगवानों ने यू पी और बिहार में अवतार लेकर वहाँ की बहुत ज़्यादा उन्नति कर दी है. वहाँ के लोग धन्य हो चुके है. अब आर्यभूमि के लोग चाहते हैं की आप सब लोगो में आधे देवता अमेरिका और बाकी आधे चीन में जन्म ले लें । जिससे ये दोनों सुपर पावर भी यू पी और बिहार की तरह हो जाय। और भारत इनकी जगह सुपर पावर बन जाए"।
लम्बी निस्तब्धता के बाद विष्णुजी ने बात को संभाला, "हमारे देवलोक की नवजात देवकन्या भी आर्यभूमि भारत से बाहर नहीं जा सकती, इतना प्रेम है सबको उस मिट्टी से। आपका यह प्रस्ताव अस्वीकार्य है। "
इस पर नारद-मुनि ने बम फोड़ा, "आपकी 'देवलोक लिमिटेड' के फुल टाइम डायरेक्टर एवं फिफ्टी परसेंट पार्टनर मिस्टर शंकर भोलेनाथ बहुत पहले ही भारत छोड़ चुके है, चीन की परमानेंट सिटिजनशिप लेकर।"
"अपनी जिह्वा को विराम दीजिये मुनिवर! कहीं ऐसा न हो मुझे ब्रम्ह-हत्या का महापाप लगे आपके प्राण लेने पर", नारायण ने भीषण गर्जना की।
नारद ने जले पर मिर्ची झोंकते हुए पैंतरा बदला, "मेरे ऊपर चिल्लाने से सच झूठ नहीं हो सकता। बेहतर हो आप अपनी कम्पनी के बारे में पूरी जानकारी रखें। आज से कई वर्ष पहले मिस्टर शंकर अपनी पूरी कालोनी 'कैलाश पर्वत' समेत चाइना जा चुके हैं। भारत वालों को उनकी कालोनी में घुसने के लिए चाइना से वीसा लेना पड़ता है, जबकि एक चीनी-वासी कभी भी वहां जा सकता है। यकीन न हो तो अपनी हनुमान मिसाइल भेजकर पता कर लें। पर ध्यान रहे चाइना ने 'अरली मिसाइल वार्निंग सिस्टम' लगा रखा है।
“नारद-जी सत्य कह रहे हैं, नाथ”, लक्ष्मीजी ने अपनी जानकारी सामने रखी क्योंकि महिलाओं का नेटवर्क अधिक शक्तिशाली होता है,”पार्वती के दोनो सुपुत्र ‘कार्तिकेय’ एवं ‘गणेश’, चीन देश में कार्यरत हैं "। लक्ष्मीजी की स्त्री ईर्ष्या मुखर हुई, “ पार्वती के दोनो पुत्रो की पूजा भारतवर्ष में अनादिकाल से हो रही है और हमारे विष्णूजी ने ‘फमिली प्लानिंग’ करा रखी है. हम सबका तो वंश ही समाप्त हो जाएगा. अपने भक्त बेचारे हनुमान का जीवन तो और भी ज़्यादा दुखी कर दिया, ब्रम्हचारी बनाकर. और वहीं पर शंकर-जी के भक्त गण जो चाहे खा पी कर ऐश कर सकते हैं, भंग गांजा सुट्टा यहाँ तक की मदिरापान भी. इसलिए कलयुग में उनके भक्तो की संख्या बढ़ती जा रही है."
विष्णु-जी का मुखमंडल अपमान क्षोभ वा मित्र-पीड़ा से रक्तिम एवं कम्पायमान हो चला। ऐसा मित्र जिसे उन्होने अपना इष्टदेव समझा और सदैव पूजते रहे. लंका पर चढ़ाई से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की. वही मित्र उनकी मातृभूमि का परित्याग करके पड़ोसी राष्ट्र से जा मिला. धिक्कार है ऐसी मित्रता पर.
लक्ष्मीजी ने विष्णु के बदलते मनोभावों को समझते हुए हृदय में दबे समस्त उदगार एक साथ उगले, "सारी जिंदगी जब भी कहीं साईट पर समस्यायें आतीं, तो इन्ही का स्थानांतरण होता था। राम, कृष्ण, नरसिम्ह , वराह इत्यादि सब मिलाकर इन्हे दस बार पृथ्वीलोक पर भेजा गया। दशावतार सब जानते हैं। वहीं शंकर जी कभी अपने परिवार से दूर नहीं गए। कोई अवतार नहीं लिया। केवल यही कहते की मेरे बच्चों का पठन - पाठन प्रभावित होगा। बच्चों को दूसरे नए स्थान पर विद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा। हमारे बच्चे नहीं थे इसलिए हम लोगों का पारिवारिक जीवन सदैव अस्थिर रहा। "
विष्णुजी ने मन ही मन कुछ निश्चित किया और मुखरित हुए, “महर्षि, मुझे एक ऐसे राष्ट्र का नाम बताइए जो सर्वशक्तिशाली हो। चीन से भी बहुत ज्यादा। पूरी वसुंधरा मे उसके समकक्ष और कोई ना हो. मैं वहाँ की नागरिकता लेकर महादेव को नीचा दिखाऊंगा”.
नारद-जी, जिन्होने अपने दस टी वी चैनेलों को सीधे प्रसारण से इस पूरे घटनाक्रम को दिखा कर सिद्ध कर दिया था कि अभी भी वो विश्व के सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टर हैं जो लोगों को छण भर में लड़ा सकता है आपस में, बोले “ठीक है मैं अमेरिकन एम्बेसी में आपके वीसा की अप्लीकेशन डाल देता हूँ। आप इंटरव्यू के लिए तैयार हो जाइए। उसके पहले आपको एक महीने का ‘रापिडेक्श इंग्लिश स्पीकिंग’ क्रैश कोर्स ज्वाइन करना होगा. ये संस्कृत और हिन्दी नहीं चलेगी”.
विष्णु-जी तुरंत तैयार हो गये। उनको क्या मालूम की अँग्रेज़ी विश्व की सबसे कठिन भाषा है. एक विद्यार्थी भारत में इसे 12-14 साल पढ़ता है फिर भी ढंग से बोल नहीं पाता. एक महीने के क्रश कोर्स में उनको पसीने छूट गये. खैर इंटरव्यू के लिए पहुँचे, नारद को साथ लेकर.
अमेरिकन, “वॅट इस दिस मैन? ये टुम्हारा किट्ना नाम है? विष्णु, नारायण, वेंकटेश, बालाजी, गोविंदा, श्री-हरि, मुरारी, गोवर्धन, गोपाला, बांके-बिहारी, रामचंद्र.............. हमको लगटा है टुम ज़रूर कोई स्मगलर या टेररिस्ट है जो नाम बदल-बदल कर डिफरेंट कंट्री में भाग रहा है।”
नारादजी ने बात संभाली, “नो योर हाइनेस। ये सब इनके निकनेम हैं. ग़लती से लिख दिया है. ये तो ‘देवलोक लिमिटेड’ के ‘सी एम डी’ हैं”
अमेरिकन, “ओके। तुम्हारे पास ‘चम्बर ऑफ कामर्स’ से सार्टिफाइड कंपनी का ‘रेजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट’ कहाँ है? हमशे झूठ बोल्टा है. विष्णु ये टुम्हारा उमर किट्ना हॅ? नंबर थ्री के बाद किट्ना ज़ीरो लगा दिया है? कॅंप्यूटर का ज़ीरो बटन खराब है क्या? डबा दिया तो छापता ही चला गया”.
विष्णु जी पहली बार बोले, “पुत्र मेरी आयु इससे भी कई गुना ज़्यादा है। मेरा ना कोई आदि है ना अंत”।
अमेरिकन, “टुम हमारा टाइम वेस्ट करने को इधर आया है? हमारा गॉड जीसस भी टू थाउज़ंड ईयर पहले पैदा हुआ ठा। टुम अपने क्वालिफिकेशन और कॉलेज के कालम में सिर्फ़ अपने टीचर का नाम लिखटा है वाशिष्ट और विश्वामित्र. ये दोनो किस कालेज का प्रोफ़ेसर है? अपनी अलुम्नि लिस्ट में ‘सुदामा’ का नाम लिखा है. ये अभी कहाँ एम्प्लाएड है?”
विष्णु-जी को ये सारे सवाल कुछ समझ नहीं आए। नारदजी ने थोड़ी हिम्मत बटोरी और आख़िरी अस्त्र छोड़ा, “इट इज नोट लाइक दैट सर। मिस्टर विष्णु बहुत बड़ी कंपनी के मालिक हैं और अपना सारा बिजनेस अमेरिका में ट्रांसफर करेंगे. वहाँ पर लोगों को एंप्लाय्मेंट मिलेगा. इकॉनॉमिक रिसेसन से आपका हेल्प करेंगे”.
अमेरिकन कुछ सीरियस हुआ। अगर अमेरिका का अपना इंटेरेस्ट हो तो सब नियम क़ानून ख़तम. बोले, “ठीक है हम तुमको वीसा देगा मगर अपना बॅंक बॅलन्स दिखाओ. अपना ऐसेट वॅल्यूयेशन सर्टिफिकट दिखाओ”.
नारद-जी ने हिम्मत नहीं हारी, “सर इनके पास नंबर टू का एसेट है। आप हमारे साथ चलिए. इंडियन ओशेन के बीच में इनका पूरा किंगडम है”.
अमेरिकन सहमत हो गया। विष्णूजी ने इन्द्रदेव को संदेश भेज कर स्वर्ग-लोक का ‘अति विशिष्ट अतिथि महल’ खाली करवा लिया, जिसे गाँधीजी कई सालों से आश्रम बना कर कब्जा किए हुए थे. इसे खाली करवाने में भी नारदजी का हाथ रहा।
नारदजी, "नारायण, भारत को इस शोचनीय अवस्था तक पहुँचाने में गांधीजी भी देवी-देवताओं से कम उत्तरदायी नहीं हैं। धरना हड़ताल तालाबंदी प्रदर्शन अराजक माहौल सब कुछ इन्हीं की देन है। खद्दर-धारी सफेदपोश मगर काला धंधा करनेवाले सारे नेता इन्हीं की उपज हैं। अगर अमेरिका को बरबाद करना है तो इनको आप साथ लेकर जाइये"।
अगले ही दिन गांधीजी का 'पुनर्जन्म पोस्टिंग ऑर्डर' तत्काल प्रभाव से उनको हस्तगत करा दिया गया, दो गवाहों की उपस्थिति में।
अवकाश के दिन रविवार को विष्णूजी का पुष्पक विमान अमेरिकन राजदूत को लेकर स्वर्ग-लोक के लिए रवाना हो गया।
यह कथा अभी पूरी नहीं हुई है. इंतजार कीजिए. वक्त मिलने पर कथानक और आगे बढ़ेगा......
उन्होने सोचा प्रभु मेरा ही नाम लेंगे। मगर नारायण कहीं दूर शून्य में निहाराते हुए बोले, ”मानव लोक के आर्यावर्त में गंगा-यमुना क्षेत्र मुझे सबसे प्यारा है। अवधपुरी की मिट्टी में मैं राम बनकर खेला कूदा हूँ। ब्रजभूमि की अमराइयों में कितने माखन चुरा कर खाए, कितनी रास लीलाएँ रचाईं. यही नहीं मेरे इष्टदेव भोले विश्वनाथ जी भी वहीं काशी में निवास करते हैं. हम दोनो ही भगवान, एक विश्व का पालनहार और दूसरा विध्वंसक, वहीं के हैं“.
" ऐसी क्या खास बात है इस मिट्टी में“, लक्ष्मी जी ने जल भुन कर कहा.
प्रभु ने कहना जारी रखा, “देवी, यह भूमि अत्यंत ही लुभावनी है। यहाँ मैने रामराज्य स्थापित किया था। चारो तरफ शांति और प्रेम का वातावरण है। तुलसीदास एवं सूरदास ने हमारा वर्णन कर करके लोगो को धार्मिक बना दिया है। अधर्म का नामोनिशान नहीं है”.
लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया,”अब वहाँ पर किसका राज है?”
“ये तो मुझे नहीं पता” विष्णु बोले,”सैकड़ों वर्ष पूर्व मैने अपने संवाद-दाता नारद मुनि को दीर्घ अवकाश पर भेज दिया था। उनके पास सुनाने के लिए कुछ भी नया समाचार नहीं होता था”.
लक्ष्मी जी ने आग में थोड़ा घी डाला,“मगर प्रभु यह तो ठीक बात नहीं है। आपको अपने लोगो की खोज खबर लेनी चाहिए. आप अपने संवाद-दाता को एक बार पुनः बुलाए“.
"शायद आप ठीक कहती हैं नारायानी“। कहते हुए प्रभु ने नारद मुनि को तरंगों का आकस्मिक संदेश प्रेषित किया.
तभी दूर क्षितिज पर कोई आकृति नज़र आई. पास आने पर मुश्किल से पहचाना. मुखारविंद तो नारद का था, मगर वेश भूषा अत्यंत विचित्र. सर के बड़े बाल कट चुके थे। शर्ट और पतलून पहन रखा था. हाथ में मजीरा और वीणा की जगह नोटबुक वा कलम पकड़ रखा था. कान पे हेडफ़ोन लगा हुआ था.
विष्णु ने कहा,”नारद मुनि ये आपने क्या हाल बना रखा है? रंगमंच पर पाताल-लोक के किसी विचित्र प्राणी का अभिनय कर रहे थे क्या? सर के ऊपर लौह धातु की छतरी उलटी क्यों धारण की हुई है ? ”
नारद ने ‘नारायण नारायण’ की जगह कहा,”एक्सक्लूसिव, एक्सक्लूसिव। हे 'देवलोक लिमिटेड' के 'चेयरमैन एंड मॅनेजिंग डाइरेक्टर', मुझे आपकी कंपनी से 'वी आर एस' चाहिए. मेरे पास इस समय दस सेटिलाइट चैनेलों के लिए एक्सक्लूसिव रिपोर्टें भेजने का आफर है. मैं इतिहास का सबसे पुराना रिपोर्टर हूँ. आप मेरा समय नष्ट ना करें. तुरंत 'वी आर एस' के साथ पिछले पाँच हज़ार वर्षों का वेतन भी मेरे बॅंक आकाउंट में ट्रान्स्फर कीजिए। मेरे सर के ऊपर लौह धातु की छतरी नहीं डिश एंटीना लगा है, उपग्रह से डायरेक्ट एक्सक्लूसिव तसवीरें भेजने के लिए । नमक मिर्च मसाला लगा कर समाचार सुनाने का मेरा पुराना फार्मूला सभी रिपोर्टरों ने चुरा कर बहुत पैसे कमा लिए हैं । और मैं हजारों वर्ष से लॉन्ग लीव पर बैठा मक्खी मार रहा हूँ" ।
विष्णु-जी भौचक्के उठ कर बैठ गये। लक्ष्मीजी का हाथ अपने पैरों से हटाते हुए कहा,” नारद-जी आप ये क्या अनाप शनाप प्रलाप कर रहे हैं? हमारी अवधपुरी और ब्रज भूमि का क्या समाचार है? लोग पूजा पाठ करते हैं या नहीं? सभी देवी देवताओ में सबसे ज़्यादा मूर्तियाँ किसकी है? राम, कृष्ण, शंकर-जी, दुर्गा या मेरे भक्त हनुमान की?”
नारद ने कहा,” इनमे से किसी की भी नहीं। सबसे ज़्यादा मूर्तियाँ मायावती और काशी-राम की हैं”.
विष्णूजी का मुख खुला रह गया,”वत्स, ये किनके अवतार हैं? हममे से तो किसी देवता ने अपना तेज देकर कोई अवतार मृत्युलोक में नहीं भेजा। खैर ये बताइए वहाँ के लोग तो अत्यंत ही बलशाली होंगे. गंगा की अमृत धारा पीकर तो लोग चट्टान की तरह बलिष्ठ एवं निडर होंगे”.
नारद-जी बोले,”आपका न्यूज नेटवर्क बहुत कमजोर है। ये लीजिए मैं आपको गंगा की एक्सक्लूसिव कवरेज दिखलाता हूँ”.
यह कहकर नारद-जी ने अपना लॅपटॉप निकाला। वाई फ़ाई से कनेक्ट करके 'गंगा' सर्च मारा तो एक गंदा नाला बहता हुआ नज़र आया, जिसमें बहुत सारे सुअर लोट रहे थे। कुछ भैंसे बाहर किनारे पर खड़ी थीं मगर अंदर घुसने की हिम्मत नही हो रही थी.
नारद-जी ने कहा,”यही है आपका गंगा-मृत। भैंस भी इसका पानी नहीं पी रहीं है। 'आर ओ' भी इसको सॉफ नहीं कर पाएगा“.
विष्णूजी ने अपना सुदर्शन चक्र नीचे रखते हुए बेचैनी से पहलू बदला,”मुनिवर, तो क्या वहाँ के लोग गंगाजल पीकर बलिष्ठ एवं पराक्रमी नहीं हुए? हमारे मार्गदर्शन से तो उन्होने समग्र विश्व में कीर्तिमान स्थापित किया होगा?”
नारद जी पुनः आग उगलते हुए बोले,”अपने ही देश के मुंबई में उनको भैया बोला जाता है”।
विष्णूजी अत्यंत प्रसन्न होकर बोले,” मैं जानता था। भैया तो ज्येष्ठ भ्राता का ही अपभ्रंश है. और क्या-क्या सम्मान मिलता है उनको?”
नारद-जी उग्र होकर बोले,”अरे क्या कूप मंडूक की तरह इस क्षीर सागर में पड़े हुए हैं आप। बाहर निकल कर देखिए. मुंबई में भैया एक गाली के समान है और उनको मार मार कर भगाया जा रहा है. यू पी का होना गुनाह है”.
पालनहार प्रभु ने पूछा,”यू पी का वृहद्-अर्थ क्या है मुनिवर?”
“यू पी का मतलब है उत्तर प्रदेश। कुछ लोग प्यार से 'उल्टा पुल्टा प्रदेश' या 'उल्लू का पट्ठा' भी बोलते है”।
महात्मा बुद्ध और महावीर, जो वहीं नीचे जल समाधि में लीन थे, सतह के उपर नज़र आए और बोले,”इसीलिए हमने हिंदू धर्म की कुरीतियों को दूर करने के लिए नये संप्रदाय बौध और जैन चलाए। हमारे स्थान कपिलवस्तु व पाटलिपुत्र अवश्य ही काफ़ी समृद्ध होंगे.”
लक्ष्मीजी ने भी उनका साथ दिया,” हाँ मैं भी वहीं मिथिला की हूँ। वहाँ की मिट्टी से तो मेरी जैसी देवियाँ निकलती हैं, जब लोग खेत में हल चलाते हैं। वहाँ तो अब सभी लोग देवी देवताओं की तरह सुसंस्कृत एवं सज्जन होंगे ?”
तभी एक अश्वारोही सागर की लहरों के ऊपर भागता हुआ आया। पास आने पर दिखा वो भारतवर्ष के महानतम सम्राट आशोक थे। अभिवादन के पश्चात् उन्होंने भी सुर मिलाया, "महामहिम, मगध का साम्राज्य तो मैंने ही सुदूर कलिंग तक पहुँचा दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय सरीखे उच्च शिक्षा केन्द्र तभी विकसित थे, जब पाश्चात्य देशों में प्राथमिक पाठशालाएं भी नहीं थीं। अब तो वहां के लोग समग्र भूमंडल के मूर्धन्य विद्वान् होंगे"।
नारद-जी अत्यंत क्रुद्ध हो गये, ”अरे इन सब जगहों को मिलाकर उसे आजकल बिहार कहा जाता है। वहाँ से ज़्यादा ग़रीबी और भ्रष्टाचार कहीं नहीं है। पूरे भारत में सबसे ज्यादा जाहिल, अनपढ़ तथा क्रिमिनल वहीं पर हैं। एक विदूषक वहां अब तक का सबसे सफल शासक रहा है ”.
सारे देवता सुनकर सन्नाटे में आ गये। किसीसे कुछ बोला नहीं जा रहा था।
तब नारद-जी ने पुनः कहना प्रारंभ किया,“आप सभी भगवानों ने यू पी और बिहार में अवतार लेकर वहाँ की बहुत ज़्यादा उन्नति कर दी है. वहाँ के लोग धन्य हो चुके है. अब आर्यभूमि के लोग चाहते हैं की आप सब लोगो में आधे देवता अमेरिका और बाकी आधे चीन में जन्म ले लें । जिससे ये दोनों सुपर पावर भी यू पी और बिहार की तरह हो जाय। और भारत इनकी जगह सुपर पावर बन जाए"।
लम्बी निस्तब्धता के बाद विष्णुजी ने बात को संभाला, "हमारे देवलोक की नवजात देवकन्या भी आर्यभूमि भारत से बाहर नहीं जा सकती, इतना प्रेम है सबको उस मिट्टी से। आपका यह प्रस्ताव अस्वीकार्य है। "
इस पर नारद-मुनि ने बम फोड़ा, "आपकी 'देवलोक लिमिटेड' के फुल टाइम डायरेक्टर एवं फिफ्टी परसेंट पार्टनर मिस्टर शंकर भोलेनाथ बहुत पहले ही भारत छोड़ चुके है, चीन की परमानेंट सिटिजनशिप लेकर।"
"अपनी जिह्वा को विराम दीजिये मुनिवर! कहीं ऐसा न हो मुझे ब्रम्ह-हत्या का महापाप लगे आपके प्राण लेने पर", नारायण ने भीषण गर्जना की।
नारद ने जले पर मिर्ची झोंकते हुए पैंतरा बदला, "मेरे ऊपर चिल्लाने से सच झूठ नहीं हो सकता। बेहतर हो आप अपनी कम्पनी के बारे में पूरी जानकारी रखें। आज से कई वर्ष पहले मिस्टर शंकर अपनी पूरी कालोनी 'कैलाश पर्वत' समेत चाइना जा चुके हैं। भारत वालों को उनकी कालोनी में घुसने के लिए चाइना से वीसा लेना पड़ता है, जबकि एक चीनी-वासी कभी भी वहां जा सकता है। यकीन न हो तो अपनी हनुमान मिसाइल भेजकर पता कर लें। पर ध्यान रहे चाइना ने 'अरली मिसाइल वार्निंग सिस्टम' लगा रखा है।
“नारद-जी सत्य कह रहे हैं, नाथ”, लक्ष्मीजी ने अपनी जानकारी सामने रखी क्योंकि महिलाओं का नेटवर्क अधिक शक्तिशाली होता है,”पार्वती के दोनो सुपुत्र ‘कार्तिकेय’ एवं ‘गणेश’, चीन देश में कार्यरत हैं "। लक्ष्मीजी की स्त्री ईर्ष्या मुखर हुई, “ पार्वती के दोनो पुत्रो की पूजा भारतवर्ष में अनादिकाल से हो रही है और हमारे विष्णूजी ने ‘फमिली प्लानिंग’ करा रखी है. हम सबका तो वंश ही समाप्त हो जाएगा. अपने भक्त बेचारे हनुमान का जीवन तो और भी ज़्यादा दुखी कर दिया, ब्रम्हचारी बनाकर. और वहीं पर शंकर-जी के भक्त गण जो चाहे खा पी कर ऐश कर सकते हैं, भंग गांजा सुट्टा यहाँ तक की मदिरापान भी. इसलिए कलयुग में उनके भक्तो की संख्या बढ़ती जा रही है."
विष्णु-जी का मुखमंडल अपमान क्षोभ वा मित्र-पीड़ा से रक्तिम एवं कम्पायमान हो चला। ऐसा मित्र जिसे उन्होने अपना इष्टदेव समझा और सदैव पूजते रहे. लंका पर चढ़ाई से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की. वही मित्र उनकी मातृभूमि का परित्याग करके पड़ोसी राष्ट्र से जा मिला. धिक्कार है ऐसी मित्रता पर.
लक्ष्मीजी ने विष्णु के बदलते मनोभावों को समझते हुए हृदय में दबे समस्त उदगार एक साथ उगले, "सारी जिंदगी जब भी कहीं साईट पर समस्यायें आतीं, तो इन्ही का स्थानांतरण होता था। राम, कृष्ण, नरसिम्ह , वराह इत्यादि सब मिलाकर इन्हे दस बार पृथ्वीलोक पर भेजा गया। दशावतार सब जानते हैं। वहीं शंकर जी कभी अपने परिवार से दूर नहीं गए। कोई अवतार नहीं लिया। केवल यही कहते की मेरे बच्चों का पठन - पाठन प्रभावित होगा। बच्चों को दूसरे नए स्थान पर विद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा। हमारे बच्चे नहीं थे इसलिए हम लोगों का पारिवारिक जीवन सदैव अस्थिर रहा। "
विष्णुजी ने मन ही मन कुछ निश्चित किया और मुखरित हुए, “महर्षि, मुझे एक ऐसे राष्ट्र का नाम बताइए जो सर्वशक्तिशाली हो। चीन से भी बहुत ज्यादा। पूरी वसुंधरा मे उसके समकक्ष और कोई ना हो. मैं वहाँ की नागरिकता लेकर महादेव को नीचा दिखाऊंगा”.
नारद-जी, जिन्होने अपने दस टी वी चैनेलों को सीधे प्रसारण से इस पूरे घटनाक्रम को दिखा कर सिद्ध कर दिया था कि अभी भी वो विश्व के सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टर हैं जो लोगों को छण भर में लड़ा सकता है आपस में, बोले “ठीक है मैं अमेरिकन एम्बेसी में आपके वीसा की अप्लीकेशन डाल देता हूँ। आप इंटरव्यू के लिए तैयार हो जाइए। उसके पहले आपको एक महीने का ‘रापिडेक्श इंग्लिश स्पीकिंग’ क्रैश कोर्स ज्वाइन करना होगा. ये संस्कृत और हिन्दी नहीं चलेगी”.
विष्णु-जी तुरंत तैयार हो गये। उनको क्या मालूम की अँग्रेज़ी विश्व की सबसे कठिन भाषा है. एक विद्यार्थी भारत में इसे 12-14 साल पढ़ता है फिर भी ढंग से बोल नहीं पाता. एक महीने के क्रश कोर्स में उनको पसीने छूट गये. खैर इंटरव्यू के लिए पहुँचे, नारद को साथ लेकर.
अमेरिकन, “वॅट इस दिस मैन? ये टुम्हारा किट्ना नाम है? विष्णु, नारायण, वेंकटेश, बालाजी, गोविंदा, श्री-हरि, मुरारी, गोवर्धन, गोपाला, बांके-बिहारी, रामचंद्र.............. हमको लगटा है टुम ज़रूर कोई स्मगलर या टेररिस्ट है जो नाम बदल-बदल कर डिफरेंट कंट्री में भाग रहा है।”
नारादजी ने बात संभाली, “नो योर हाइनेस। ये सब इनके निकनेम हैं. ग़लती से लिख दिया है. ये तो ‘देवलोक लिमिटेड’ के ‘सी एम डी’ हैं”
अमेरिकन, “ओके। तुम्हारे पास ‘चम्बर ऑफ कामर्स’ से सार्टिफाइड कंपनी का ‘रेजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट’ कहाँ है? हमशे झूठ बोल्टा है. विष्णु ये टुम्हारा उमर किट्ना हॅ? नंबर थ्री के बाद किट्ना ज़ीरो लगा दिया है? कॅंप्यूटर का ज़ीरो बटन खराब है क्या? डबा दिया तो छापता ही चला गया”.
विष्णु जी पहली बार बोले, “पुत्र मेरी आयु इससे भी कई गुना ज़्यादा है। मेरा ना कोई आदि है ना अंत”।
अमेरिकन, “टुम हमारा टाइम वेस्ट करने को इधर आया है? हमारा गॉड जीसस भी टू थाउज़ंड ईयर पहले पैदा हुआ ठा। टुम अपने क्वालिफिकेशन और कॉलेज के कालम में सिर्फ़ अपने टीचर का नाम लिखटा है वाशिष्ट और विश्वामित्र. ये दोनो किस कालेज का प्रोफ़ेसर है? अपनी अलुम्नि लिस्ट में ‘सुदामा’ का नाम लिखा है. ये अभी कहाँ एम्प्लाएड है?”
विष्णु-जी को ये सारे सवाल कुछ समझ नहीं आए। नारदजी ने थोड़ी हिम्मत बटोरी और आख़िरी अस्त्र छोड़ा, “इट इज नोट लाइक दैट सर। मिस्टर विष्णु बहुत बड़ी कंपनी के मालिक हैं और अपना सारा बिजनेस अमेरिका में ट्रांसफर करेंगे. वहाँ पर लोगों को एंप्लाय्मेंट मिलेगा. इकॉनॉमिक रिसेसन से आपका हेल्प करेंगे”.
अमेरिकन कुछ सीरियस हुआ। अगर अमेरिका का अपना इंटेरेस्ट हो तो सब नियम क़ानून ख़तम. बोले, “ठीक है हम तुमको वीसा देगा मगर अपना बॅंक बॅलन्स दिखाओ. अपना ऐसेट वॅल्यूयेशन सर्टिफिकट दिखाओ”.
नारद-जी ने हिम्मत नहीं हारी, “सर इनके पास नंबर टू का एसेट है। आप हमारे साथ चलिए. इंडियन ओशेन के बीच में इनका पूरा किंगडम है”.
अमेरिकन सहमत हो गया। विष्णूजी ने इन्द्रदेव को संदेश भेज कर स्वर्ग-लोक का ‘अति विशिष्ट अतिथि महल’ खाली करवा लिया, जिसे गाँधीजी कई सालों से आश्रम बना कर कब्जा किए हुए थे. इसे खाली करवाने में भी नारदजी का हाथ रहा।
नारदजी, "नारायण, भारत को इस शोचनीय अवस्था तक पहुँचाने में गांधीजी भी देवी-देवताओं से कम उत्तरदायी नहीं हैं। धरना हड़ताल तालाबंदी प्रदर्शन अराजक माहौल सब कुछ इन्हीं की देन है। खद्दर-धारी सफेदपोश मगर काला धंधा करनेवाले सारे नेता इन्हीं की उपज हैं। अगर अमेरिका को बरबाद करना है तो इनको आप साथ लेकर जाइये"।
अगले ही दिन गांधीजी का 'पुनर्जन्म पोस्टिंग ऑर्डर' तत्काल प्रभाव से उनको हस्तगत करा दिया गया, दो गवाहों की उपस्थिति में।
अवकाश के दिन रविवार को विष्णूजी का पुष्पक विमान अमेरिकन राजदूत को लेकर स्वर्ग-लोक के लिए रवाना हो गया।
यह कथा अभी पूरी नहीं हुई है. इंतजार कीजिए. वक्त मिलने पर कथानक और आगे बढ़ेगा......