बहुत दुखी था कार्यालय मे, जब बास ने दुत्कारा
घर पहुंचा तो पत्नी ने भी, बेलन से फटकारा
बेलन से फटकारा, तो मैं हुआ बहुत बेचैन
घर से निकला एक बोर्ड पर, ठहर गये मेरे नैन
“मस्जिद मे है अल्लाताला, मंदिर मे भगवान
मयखाने की साकी बोले, यहा बसे इन्सान
यहा बसे इंसान, सुनो जी बात हमारी
प्रसाद चखते दोनो मेरा, काजी और पुजारी ”
सुनी बात जब मैने फिर तो, हुआ बडा बेताब
चल कर देखू कैसा लगता, है ये आफताब
है ये आफताब वाकई, जीतेजी पहुंचे जन्नत
रोम-रोम मे बिजली कडके, बची नही कोई मन्नत
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बोतल लेकर एक शराबी, आया मेरे पास
सन्न रह गया जब देखा, वो था आफिस का बास
वो था आफिस का बास, पीकर लगा बोलने ‘सारी’
वाह डीके तुम अब सीखे हो, पूरी दुनियादारी
मय की महिमा तुम क्या जानो, जीते कितने टेंडर
क्लाइंट देता बिजनेस सरपट, जब पउवा होता अंदर
जब पउवा होता अंदर, गंगू राजा भोज बनजाये
मोदी पहने टोपी, और मुलायम मंदिर बनवाये
डुबकी मारो क्लाइंट के संग, मय-सागर मे डटकर
बिजनेस टारगेट खुद आयेगा, पास तुम्हारे चलकर
पास तुम्हारे चलकर, फार्मूला यदि पहले अजमाते
सुबह-शाम आफिस मे फिर क्यो, मुझसे डांट खातेकोर्टरूम में पवित्र ग्रंथों का, होता नित अपमान
झूठ बोलते हाथ में लेकर, गीता और कुरान
कह डीके कविराय इन्हे बस, साकी के दो घूंट पिला दे
वही गवाह फिर न्यायालय में, सच्चाई की झड़ी लगा दे
सर्वोच्च पाठ सीख जीवन का, निकला पीकर बाहर.
भीड लगी थी एक झोपड मे, देखा मैने जाकर.
मार रहा कोइ पत्नी-बच्चो को, दो जल्दी से पैसे.
पिया नही एक घूंट सुबह से, अद्धा मिलेगा कैसे.
गई नही थी आज काम पर, बच्चे को था ताप.
पीटते जा रहे कसाई बनकर, कैसे हो तुम बाप.
कैसे हो तुम बाप, बेच पी डाली जायदाद सारी.
लीवर खतमकर किडनी बेची, खरीदी केवल बीमारी.