ब्रितानी उपनिवेशवाद के समय कई ऐसे द्वीपों पे अंग्रेजों का
अधिपत्य हुआ जो अविकसित थे. मारीशस, सूरीनाम, जमैका, फिजी, त्रिनिदाद, गुयाना आदि.
जंगल झाडी व कीड़े मकोड़ों से भरे इन द्वीपों के विकास व् खेती बाडी के लिए भारतीय
मजदूरों को वहाँ ले जाया गया. सब्ज बाग़ दिखाए दलालों ने कि वहां सबको ढेर सारी जमीन
दी जायेगी, सब मालामाल हो जायेंगे. दास प्रथा समाप्त हो चुकी थी. इसलिए उन्हें ५
वर्ष के एग्रीमेंट पे ले जाया गया. अनपढ़ मजदूर एग्रीमेन्ट को गिरमिट बोलते थे.
कालान्तर में उनका नाम ही पड गया गिरमिटिया मजदूर. अपने मारीशस प्रवास के दौरान
बहुत दिनों से इस विषय पे लिखने की सोच रहा था. अन्ततः इसी पे आधारित एक नई रचना
करने में सफल हुआ.
ओझा को बुलवाया
मंदिर में शीश नवाया
ग्यारह बाभन खिलवाया
चारो धाम चक्कर लगाया
कई चतुर्थी व्रत
करवाया
पर इश्वर को तरस न आया
सातवाँ बच्चा भी मृत पाया
दिन महीने बीते, बीत गए साल
फिर कहीं मिला उसे, ख़ुशी का हाल
जिन्दा बेटा पैदा हुआ, बजाये ढोल ताल
बूढी काकी चिल्लाए, चुप रह बेताल
क्या ये बच पायेगा,
मुझे है मलाल
न पूछे यमदूत कोई, जो नाम रखे बेकार
बुद्धू घूरा चिरकुट रखो, या रखो चण्डाल
बुद्धू बना सबका दुलारा
घर का नूर आँखों का तारा
न करवाए कोई काम
बस आराम ही आराम
न करे खेती, न कोई किसानी
देखते ही देखते, आ गई जवानी
हो गया लगन, सब दुल्हन को निहारे
पर अगले ही रात, पिता परलोक सिधारे
जमींदार का कर्ज, अब कैसे उतारे
दो दिन की किसानी में, नजर आ गये तारे
दिन भर दोनों का बदन, धुप में जलता
आधे पेट खाता , और चिथड़ा पहनता
रात में भी काम, चौकीदारी था करता
जमींदार का कर्ज, फिर भी रोज बढ़ता
दशहरे का मेला, लगा था मजमा
मंच पे खडा कोई, सुना रहा नगमा
अंग्रेजों को अभी अभी, मिलें हैं कई टापू
जल्दी चले जाओ वहाँ, सुन लो अम्मा-बापू
बहुत ही उपजाऊ, सब खेत खाली पडा है
चोर डाकुओं का ढेरों, वहाँ खजाना गड़ा है
पहले पहुँच के वहाँ, जो करेगा दीदार
लक्ष्मी की कृपा से, हो जाएगा जमींदार
बुद्धू और पत्नी के, मिले नैन से नैन
कर लिया फैसला, अब न रहे बेचैन
लिखा दिया नाम, भाग के पहुंचे कलकत्ता
था रोम रोम रोमांचित, बूटा बूटा पत्ता पत्ता
हुए सवार जल-जहाज पे, सपना होता साकार
पर टूट गया दिल आधा, जब खेने लगे पतवार
थोड़ी झपकी में पडा हंटर, तो यात्रा हुई दुश्वार
महीने भर की यात्रा में, मर गए कई सवार
मारीशस आ पहुंचा जलयान, यात्री सभी उतर गए.
बहे रक्त सुर्ख नयनों से, पति-पत्नी जब बिछड़ गए.
पत्नी को डाला महिला कैम्प में, बुद्धू को अलग लिवा गए
धधकती ज्वाला में जलते दोनों, हाय विधाता कहाँ गए.
गलबहियाँ डाल रात भर रोते, मिले कभी जब हफ्ते-हफ्ते.
विवाह की मेहंदी उतर गई, हाथ पैर सब जाते फटते.
खजूर में अटकने से तो, आसमान ही भला था
जमींदार के यहाँ हंटर कभी, पीठ पे न पडा था.
भाई बहन बाबुल और मायका, का साथ ही बड़ा था.
होली दीवाली पे साथ सबका, पूरा समाज खडा था.
जमीन का सीना चीरे बुद्धू, सूरज बरसाए आग.
होठ सूख पपड़ी बने, प्यास जोरों की लाग.
गन्ना तोड़ लगे चूसने, बगल खेत में भाग.
दांत ही उसका तोड़ दिया, अंग्रेज कालिया नाग.
हालत ऎसी देख उसकी, पत्नी को चक्कर आये.
भाग तो सकते नहीं, चलो मौत को गले लगाए.
निकल गए दोनों ग्रैंड बे,
समंदर में डूब समायें.
गश खा तभी गिरी संगिनी, अस्पताल में जा पहुंचाए.
अस्पताल में सिस्टर बोली, बुद्धू देती तुम्हें बधाई.
पत्नी तुम्हारी माँ बनेगी, सोहर की अब करो गवाई.
हा देव ये कैसी लीला, मन मै कैसे हुआ विकार.
बच्चे की जान चले थे लेने, नहीं हमें इसका अधिकार.
इस बच्चे को अब पालेंगे, रहा यही हमारा संस्कार.
मरने को यदि अब सोचा तो, ऐसे जीवन पे धिक्कार.
यहीं जियेंगे यहीं मरेंगे, मारीशस द्वीप हमें स्वीकार.