चाह नहीं
पुलिस बन रिक्शेवालों पे डंडा बरसाऊँ
चाह नहीं वकील बन झूठ का पुलिन्दा फैलाऊँ
चाह नहीं प्रोफ़ेसर बन क्लासरूम में ही रह जाऊं
चाह नहीं डाक्टर बन आधी रात को दौड़ा जाऊं
चाह नहीं आईएएस बन नेताओं से गाली खाऊँ
मुझे बना
देना तुम भगवन, दे देना एक ऐसा मन्त्र
मानवता के
लिए समर्पित, बनाता जाऊँ नूतन यंत्र
आईआईटी में
दिया नहीं आया, रुड़की में दिया नहीं आया.
इंजिनियर
बनना नहीं भाग्य में, चराओ भैंस धरमेंदर भाया
तभी मोहल्ले
का डाकिया आके, बत्तीसी निकाल हाथ लहराया
बस्ते से
निकाल, मालविया में सेलेक्शन का लिफाफा दिखलाया
हनुमानजी को
लड्डू चढ़ाया, कई बार था माथा रगडा
साहूकार नरम
पड़ गया, वसूली में तोड़ गया था जबड़ा
पत्नी अब
सुन्दर मिलेगी, दोस्तों में भारी हो गया पलड़ा
अड़ोसी-पड़ोसी
जलने लगे, साले को दहेज़ भी मिलेगा तगड़ा
भाई साहब, वार्डन से मिलने का कुछ तो बताओ
जतन
उसने कहा, फ्रेशर हो साले, पहले देखो अपना थर्ड बटन
मलावियन
सॉंग व ऐन्थेम से, करो इस कालेज को नमन
फर्शी सलाम
ठोंकते हुए, फिर यहाँ से करो वार्डन को गमन.
मैंने कहा
कुछ समझ आया नहीं, रक्षा करो हे माँ दुर्गा
उसने कहा सब
समझ आ जाएगा, पहले तू बन जा मुर्गा.
कालेज में
एडमिशन लिया, कुछ मित्र भी बन गए
खूँखार
सीनियरों को देख मगर, हम बहुत ही डर गए
शाम को भाग
के सारे मित्र, शहर में गोलघर पहुँच गए
पार्क
सिनेमा हाल ट्रेन का डब्बा,
कहीं पे भी लटक गए.
रात भर सोने
न दें, सुबह भी जगा दें तड़के
ज़रा भी ना
नुकर किया, तो दे तमाचा जडके
घर वालों से
कही, तो वो अलग से भड़के
मन तुम्हारा
लगता नहीं, पढाई करो जमके
रैगिंग का
अंत होता नहीं, बीत गए दो मॉस
इससे तो
बेहतर था, मैं गाँव में छीलता घास
वर्ष युग के
सामान लगे, हर पल हर एक सांस
हे बजरंगी
अब ख़तम करो, ये अंतहीन वनवास
तीन महीने
बाद एकदम, छप्पर फाड़ वो ख़ुशी आई
फ्रेशर
पार्टी की नोटिस जब, हॉस्टल में पडी दिखाई
पंकज का गीत
व शर्मा का नृत्य, अदा सबको भाई
सीनियर
जूनियर सब हुए समान, ख़त्म हुई बीच की खाई
तीनों बटन
अब खोल के चलते, हम भी बन गए पूरे दादा
पढाई लिखाई
कभी न होती, बस हल्ला करते रहते ज्यादा
हाकी राड और
कट्टा रखते, सबसे लड़ने पे आमादा
परीक्षा जब
सर पे आ गयी, तो दिखाई देने लगे परदादा
तिवारी से
माँग सिलेबस लाया, पढूँ कहाँ कौन से छोर
कमरे से
बाहर विंग में तभी, होने लगा यकायक शोर
परीक्षा
टालो पीछे करो, जयदीप लगाये नारा जोर
सारे बकैत
सहमत हुए, चला हुजूम प्रिंसिपल की ओर
आखिरी पेपर
देने के बाद, ट्रेनों में पूरा कब्जा जमा बैठे
वानरी सेना
ये नोच खाती, यदि डब्बे में कोई ज़रा भी ऐंठे
रेलवे कंसेसन पर डीन के ठप्पे, हास्टल में ही लग जाते थे।
रेल यात्रा में सारे मालवियन, केवल हरिजन कहलाते थे।
जैसे पतंगा हो सम्मोहित, देख जलता हुआ दिया।
विरहिणी के लिए जैसे उसका, बिछड़ा हुआ पिया।
किसी युद्धबंदी ने जैसे, अपना वतन पा लिया।
वैसे हम भूतपूर्व-छात्रों के लिए, होता था मालविया।
चाह नहीं वकील बन झूठ का पुलिन्दा फैलाऊँ
चाह नहीं प्रोफ़ेसर बन क्लासरूम में ही रह जाऊं
चाह नहीं डाक्टर बन आधी रात को दौड़ा जाऊं
चाह नहीं आईएएस बन नेताओं से गाली खाऊँ
रेल यात्रा में सारे मालवियन, केवल हरिजन कहलाते थे।
विरहिणी के लिए जैसे उसका, बिछड़ा हुआ पिया।
किसी युद्धबंदी ने जैसे, अपना वतन पा लिया।
वैसे हम भूतपूर्व-छात्रों के लिए, होता था मालविया।
मित्रों के संग घूम टहल , गन्ना अमरुद उड़ाते थे।
गोलघर में तितलियों के पीछे, लम्बी रेस लगाते थे।
कुछ को खोराबार के जंगल ही, ज्यादा रास आते थे।
ढाबे में इतना खा लिये, बाबूलाल पैरों में गिर जाते थे।
निर्दयी वार्डेन सर्द रातों में, हमारा हीटर उठा ले जाते थे।
साथी दोस्त के लिए झगडा कर, अपना सर भी फुड़वाते थे।
पास होने पर उस दोस्त से दुबारा, शायद ही मिल पाते थे।
परीक्षा टलवाने के लिए हम भी, प्रिंसिपल तक को हड़काते थे।
छोड़ दूँ 72 हूर, तोड़ भागूं इंद्रलोक के ताले।
मिल जाय बिछड़े यार संग, जाम के चंद प्याले।
कह डीके
कविराय, मरने के बाद जब भी ऊपर जाऊँगा,
अंतिम इच्छा
के रूप में, वहाँ भी एक मालविया मागूँगा.