Sep 13, 2007

एक दुखियारी की जीवन यात्रा

सूरदास की ब्राजभाषा ने, मुझको दूध पिलाया है।
तुलसी की अवधी ने भी , स्तनपान कराया है।
पंचमेल खिचड़ी कबीर की, सुंदर स्वाद चखाया है।
बिहारी के मारक दोहों ने, मेरा शृंगार रचाया है।

भारतेंदु की स्वर्ण लेखनी, से यौवन का भान हुआ।
जयशंकर प्रसाद के जादू से, शक्ति का संचार हुआ।
नेताजी के आज़ाद हिंद का, भारत में आगाज़ हुआ।
उस सेना की भाषा बनकर, मेरा बड़ा सम्मान हुआ।

अँग्रेज़ी लिपि में बाधित कर, हिंदी संदेश पठाऊँगा।
अँग्रेज़ कमांडर समझ न पाए, ऐसा उनको उलझाऊँगा।
स्वतंत्र भारत में जनमानस की, महारानी बनवाऊंगा।
संयुक्त राष्ट्र में अँग्रेज़ी से, उपर तुझे बिठाऊँगा।

नेताजी का सपना सच हो, ऐसी सबकी आशा है,
संयुक्त राष्ट्र में गूँज चुकी, आगे भी अभिलाषा है,
जैसा लिखते वैसा पढ़ते, वैज्ञानिक ये भाषा है,
अमीर गरीब सभी लोगों को, सीखने की जिज्ञासा है,

भारत माँ की कंचन काया में, सदा रही माथे की बिंदी।
देश-विदेश में फैलती जाती , इसे  लोग कहते हैं हिंदी.

Sep 12, 2007

कल और आज में फ़र्क

कल का बच्चा :-
माँ बाप से दूर, गुरुकुल में जाते थे
सुबह उठ योगा कर, सूखी रोटी खाते थे
सारे वेद पुराण ऐसा, याद करवाते थे
बिना लिखे सारी ज़िंदगी भूल नहीं पाते थे

आज का बच्चा:-
ऑडियो विसुअल टीचिंग होती, कंप्यूटर भी साथ हुआ
माँ बाप हॉमवर्क करते हैं, बच्चे को क्या याद हुआ
दूने बोझ का बस्ता लादे, शरीर धनुषा कार हुआ
मासूमियत का नाम नहीं है, बच्चा ज़िंदा लाश हुआ
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कल का समाज:-
जुम्मन के घर बैठ पटवारी, ख़ाता था दही मट्ठा।
एक जगह से लिख लेता था, पूरे गाँव का चिट्ठा।
नहर पे जोखू - बगल में भगेलु, देता था निर्देश।
लिखाया उसे भी जो पीढ़ियों पहले, चला गया परदेस।
आज का समाज :-
स्टाक मार्केट की हर ख़बर हमें, अंबानी ने कहाँ फैलाया धंदा।
मगर पड़ोस में कौन रहता है, इसमें अपना ज्ञान है मंदा।
बुखार की दवा हेतु घंटी बजाते, हमारे पड़ोसी गुलशन नंदा।
दरवाज़ा खोल धाड़ से बंद कर दिया, भागो नहीं देना है चंदा।
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कल का समाज :-
मुझे याद है वो बचपन, जब घनश्याम की नानी मर गयीं।
पूरे गांव की तीन शादियाँ, उनकी तेरहवीं तक टल गयीं।
बारातियों से लदी तीन बसें, चौधरी के दरवाजे से लौट गयीं।
ताजा पकवानों से भरी थालियाँ, बाहर कूडे में फिंक गयीं।
आज का समाज :-
भूतल पर शादी की चकाचौंध, ढोल ताशे बजते हैं।
खूब सारे बाराती सजे धज़े, डिस्को नृत्य करते हैं।
उसी फ्लैट के द्वितीय तल पर, दिए नहीं जलते हैं।
शर्मा जी की शव यात्रा है, और चार लोग नहीं मिलते हैं।

Sep 11, 2007

State of IITs

Rosy pictures at all times for IITs by the media, by its alumni and almost everybody. Large chunk of govt funds flowing in. Everything looked great about them till I visited the first and oldest institute out of the seven stars.......

The hostel room space is grossly inadequate, provided to 1st year students in Malviya hall. The room is on twin sharing basis but has just one almirah. With great difficulty one can put two very small sized tables. And thereafter we find hardly any space left to move around. Water supply was for a very short period and almost none for the higher floors. I saw poor students climbing stairs with water buckets after collecting water from the ground floor. I thought situation might improve in 2nd year.....

But this looked even worse. I found the 2nd year students in the oldest hostel, Patel Hall, living in even smaller rooms, again on twin sharing basis. This time they had to share the table also in addition to the almirah.

I studied in a state owned engg college but led a fairly comfortablel lifestyle. Right from the 1st year itself, we had separate almirah and big study table for each student. Ward boys were employed by the administration to sweep and also wash the clothes.

Any guess why the brightest stars are made to live in such a cramped space? Why IITs with floating funds are unable to utilise them? There is vast empty ground available to construct 'n' number of hostels. On top of all this Arjun Singh is enforcing 27% additional seats. Where will they all be put up?