याद है बचपन का वो दिन, जब पंडित शास्त्री को हाथ दिखलाया था।
विदेश यात्रा की बड़ी प्रबल लकीर है, उन्होने तुरंत देख बतलाया था।
कॅंप्यूटर होरोस्कोप ने लेकिन, विदेशी योग ना होने का आँकड़ा समझाया था।
ऊहापोह में रहा बरसों मैं, जब तक भाग्य ने 'टी सी आई एल' में नहीं पहुचाया था।
मगर टी सी आई एल में आकर भी, आई सी डी में फँस गया बरसों।
फिर क़ुवैत में सेलेक्ट हुआ तो, जैसे उगा हाथ पर सरसों।
फाइल आई हेड के पास, तो उनका पारा चढ़ गया कोसों।
बिना पूछे अप्लाई क्यों किया, अब विदेश जाने को तरसो।
कुछ अरसे बाद फिर, किस्मत ने पलटी खाई।
पता नहीं कहाँ से, एक विदेशी वेकेन्सी आई।
हेड ने खुद कहा, तुम्हें आज ही जाना है भाई।
पड़ोसी रिश्तेदार घर पे, खाने आ गये मिठाई।
भारी भीड़ मेरे घर पे, पूरा मेला लग गया।
एयरपोर्ट के लिए मिनी बस, फूलमाला से ढक गया।
मैं पी आर ओ के पास खड़े खड़े, सात बजे तक पॅक गया।
एयर टिकट लाने वाला, ट्रफ़िक में कहीं अटक गया।
रिश्तेदारों ने मेरा समान पॅक कर, सीधे एयरपोर्ट पहुँचाया।
आफ़िस से भाग गिरते पड़ते, मुझे भी गन्तव्य नज़र आया।
दोस्त लोगो से निपट जल्दी जल्दी, खुद को सीधे अंदर लाया।
चेक इन काऊँटर पे पहले से ही, पी आर ओ को खड़े पाया।
पासपोर्ट और टिकट दीजिए, पी आर ओ जी ने फरमाया है।
मन का सारा मैल धुल गया, बिचारा मेरी सहायता को आया है।
मगर ये क्या, उसे तो एयरपोर्ट से बाहर का रास्ता भाया है।
बोला घर जाओ, पोस्ट कैंसिल हो गयी, संदेशा मैने पाया है।
कुछ महीनो बाद.....
साऊदी की बंपर वेकेन्सी, मना कर दिया, मन था बेहद खिन्न।
टी सी आई एल की विदेश यात्रा, मुझे लगे है, एक डरावना जिन्न।
विश्व का रिचेस्ट अएल्फील्ड है, कहा सबने, साऊदी औरों से भिन्न।
ग़रीबदास बने रहोगे, यहाँ रहकर, व्यर्थ होंगे जीवन के दिन।
सऊदी एयर में बैठ गया, सुंदर सपना साकार किया।
एयर होस्टेस की हसरत में, काल्बेल पर प्रहार किया।
खुर्राट मोटे दढ़ियल ने आकर, लाल नेत्रों से, मानो मेरा संहार किया।
अरबी में गुर्राते उस दानव को, हाथ जोड़ वहाँ से प्रस्थान किया।
सबको पैकेट बाँटते हुए, सामने आ गया खाने ठेला।
कितने का है पूछा मैने, कम्पनी ने दिया नहीं एक भी धेला।
सब कुछ फ्री है कहा उसने, तो मेरा हृदय हुआ अलबेला।
ग़रीब फक्कड़ भारत से बाहर, सब फ्री, फिर क्या है झमेला।
पूरा परिवार साथ लाना था, क्यों मैं आ गया अकेला।
वहां खाने का मंजर देख, हम बहुत चकरा गए।
कई पढे लिखे मूरख आइसक्रीम को, कुल्हड़ सहित चबा गए।
हम भी टिशू पेपर को रोटी समझ, सब्जी लगाकर खा गए।
बचे हुए प्लास्टिक के चम्मच चाकू, जेब में सरका गए।
निकला चिप्स और पेप्सी लेकर, साथ में था और कोई ना।
पुलिस कार रोक कर पूछा, कहाँ है मार्केट अल -सबीना।
दरवाजा खोल गाड़ी में बिठा लिया, वह रे शराफ़त का नगीना।
पर हवालात में लाकर लगा पीटने, तो छूटा मेरा पसीना।
खुले आम खाने-पीने का चार्ज लगा, वो था रमजान का महीना।
चिडियाघर की सैर को निकले, जानवरों का समंदर।
भारतीय शेर दिखा मरियल सा, जैसे कोई छछूंदर ।
उसे खाने में मिलता था केवल, केला और चुकन्दर।
बेचारे रायल बंगाल के सऊदी वीसा में, लिखा हुआ था बन्दर।
बड़े अरबी की बड़ी गाड़ियाँ, चार बिबीयों के नखरे।
अँग्रेज़ी की टाँग तोड़ते, लगाएँ परफ्यूम और स्प्रे।
आई वाज़ बार्किंग आउट साइड, नाउ गोइंग टू ब्रे। (अरबी लोग प को ब बोलते हैं)
शिट इन द कंट्रोल रूम, डू नॉट यूज़ ऐश ट्रे। (कंट्रोल रूम में बैठो, स्मोक करना मना है )
घर फोन करने पी सी ओ पहुँचा, दिमाग था बेकरार।
श्रीमतीजी ने खोल दिया, समस्याओं का अम्बार।
बिजली का बिल आ गया, इस बार दस हजार।
ऐ टी एम् कार्ड खराब हो गया, कैसे चलाऊं घर बार।
' डी डी ऐ ' वाले तोड़ गए बालकनी, पिछले ही सोमवार।
लोन का चेक बाऊंस हो गया, बैंक उठा ले गया कार।
गाँव में पट्टी दारों ने कब्जा कर लिया, सारा खेत बार।
मेरी कमर की डिस्क स्लिप हो गई, चलना है दुश्वार।
जो बच्ची बाजार में खिलौने हेतु , रोती चिल्लाती थी बेजार।
बनाती है पापा की तस्वीरें हमेशा, बाजार जाने को नहीं तैयार।
तुम परदेस जाकर बैठ गये हो, अब रहा नहीं वो प्यार।
विदेशी धन की लालसा में, काट दिए दिन, रातों को जाग जाग।
भतीजी की शादी में कर नहीं पाया कन्यादान, रहेगा जीवन भर यह दाग।
बेटा हास्टल में जाकर बिगड़ गया, पत्नी कर नहीं पायी दौड़ भाग।
जवान बेटी खोजती बाप का साया, फुफ्कारतें हैं समाज के काले नाग।
बैरागन बावली पत्नी भूल गयी, क्या दीवाली क्या है होली का फाग।
कहाँ चला गया मेरे बुढ़ापे की लाठी, वृद्ध लाचार पिता अलापता है राग।
माँ की अरथी उठ गयी बिना मेरे कंधे के, नहीं दे पाया चिता को आग।
टी सी आई एल का ये जो भवन, आपको दिख रहा है धांसू।
मिला है इसके ईंट गारे में, हम जैसे कर्मियों के खून का आंसू.
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3 comments:
Sir, Your Hindi is Excellent.....
This was a very good one! Nice theme, good flow, and yes excellent hindi and rhyming!
Vandana
kavita achhi lagi aisa lagata hai ki koi achha sa sahityakar likh raha hai
rajiv
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