कल का बच्चा :-
माँ बाप से दूर, गुरुकुल में जाते थे
सुबह उठ योगा कर, सूखी रोटी खाते थे
सारे वेद पुराण ऐसा, याद करवाते थे
बिना लिखे सारी ज़िंदगी भूल नहीं पाते थे
आज का बच्चा:-
ऑडियो विसुअल टीचिंग होती, कंप्यूटर भी साथ हुआ
माँ बाप हॉमवर्क करते हैं, बच्चे को क्या याद हुआ
दूने बोझ का बस्ता लादे, शरीर धनुषा कार हुआ
मासूमियत का नाम नहीं है, बच्चा ज़िंदा लाश हुआ
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माँ बाप से दूर, गुरुकुल में जाते थे
सुबह उठ योगा कर, सूखी रोटी खाते थे
सारे वेद पुराण ऐसा, याद करवाते थे
बिना लिखे सारी ज़िंदगी भूल नहीं पाते थे
आज का बच्चा:-
ऑडियो विसुअल टीचिंग होती, कंप्यूटर भी साथ हुआ
माँ बाप हॉमवर्क करते हैं, बच्चे को क्या याद हुआ
दूने बोझ का बस्ता लादे, शरीर धनुषा कार हुआ
मासूमियत का नाम नहीं है, बच्चा ज़िंदा लाश हुआ
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कल का समाज:-
जुम्मन के घर बैठ पटवारी, ख़ाता था दही मट्ठा।
एक जगह से लिख लेता था, पूरे गाँव का चिट्ठा।
नहर पे जोखू - बगल में भगेलु, देता था निर्देश।
लिखाया उसे भी जो पीढ़ियों पहले, चला गया परदेस।
जुम्मन के घर बैठ पटवारी, ख़ाता था दही मट्ठा।
एक जगह से लिख लेता था, पूरे गाँव का चिट्ठा।
नहर पे जोखू - बगल में भगेलु, देता था निर्देश।
लिखाया उसे भी जो पीढ़ियों पहले, चला गया परदेस।
आज का समाज :-
स्टाक मार्केट की हर ख़बर हमें, अंबानी ने कहाँ फैलाया धंदा।
मगर पड़ोस में कौन रहता है, इसमें अपना ज्ञान है मंदा।
बुखार की दवा हेतु घंटी बजाते, हमारे पड़ोसी गुलशन नंदा।
दरवाज़ा खोल धाड़ से बंद कर दिया, भागो नहीं देना है चंदा।
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मगर पड़ोस में कौन रहता है, इसमें अपना ज्ञान है मंदा।
बुखार की दवा हेतु घंटी बजाते, हमारे पड़ोसी गुलशन नंदा।
दरवाज़ा खोल धाड़ से बंद कर दिया, भागो नहीं देना है चंदा।
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कल का समाज :-
मुझे याद है वो बचपन, जब घनश्याम की नानी मर गयीं।
पूरे गांव की तीन शादियाँ, उनकी तेरहवीं तक टल गयीं।
बारातियों से लदी तीन बसें, चौधरी के दरवाजे से लौट गयीं।
ताजा पकवानों से भरी थालियाँ, बाहर कूडे में फिंक गयीं।
मुझे याद है वो बचपन, जब घनश्याम की नानी मर गयीं।
पूरे गांव की तीन शादियाँ, उनकी तेरहवीं तक टल गयीं।
बारातियों से लदी तीन बसें, चौधरी के दरवाजे से लौट गयीं।
ताजा पकवानों से भरी थालियाँ, बाहर कूडे में फिंक गयीं।
आज का समाज :-
भूतल पर शादी की चकाचौंध, ढोल ताशे बजते हैं।
खूब सारे बाराती सजे धज़े, डिस्को नृत्य करते हैं।
उसी फ्लैट के द्वितीय तल पर, दिए नहीं जलते हैं।
शर्मा जी की शव यात्रा है, और चार लोग नहीं मिलते हैं।
भूतल पर शादी की चकाचौंध, ढोल ताशे बजते हैं।
खूब सारे बाराती सजे धज़े, डिस्को नृत्य करते हैं।
उसी फ्लैट के द्वितीय तल पर, दिए नहीं जलते हैं।
शर्मा जी की शव यात्रा है, और चार लोग नहीं मिलते हैं।
1 comment:
kal aur aaj ki duniya men antar to bahut adhik barh gaya hai ham bikas ki andhi daurd men sab manyatayeen bhulte ja rahe hain
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