सृष्टि के रचयिता परमपिता ब्रम्हा जी ने योजनाबद्ध तरीके से दो जुड़वाँ भाइयों की संरचना की। एक का नाम रखा नरम तथा दूसरे का गरम। दोनों रंग रूप कद काठी में एक सामान परन्तु मानसिकता में पूर्णतया विपरीत। 'नरम' अत्यन्त शांत, सहिष्णु, अहिंसावादी, कृपालु, दानी, क्षमा करने वाला एवं सह अस्तित्व वादी था। इसके विपरीत 'गरम' क्रोधी, हिंसक, घमंडी तथा क्रूर था। इन दोनों को अपना कैरियर बनने हेतु ऋषि मुनियों की पतित पावन भूमि भारतवर्ष में अवतरित किया गया।
नरम ने आकर लोगों को शान्ति अहिंसा व सहिष्णुता का पाठ पढ़ना शुरू किया हिंदू धर्मं के रूप में। ये भारत के बाहर कहीं आक्रमण करने नहीं गए। इसके विपरीत गरम ने आकर हिंसा का भयंकर तांडव शुरू किया। लोगो को डरा धमका कर जबरन धर्मांतरण करवाया। उनके लिए धर्म का स्थान देश, मानवता, समाज हर चीज से ऊँचा है। आज उस धर्म को मानने वाले विश्व में सबसे ज्यादा लोग हैं। जबकि नरम के हिन्दुओं में बचे खुचे लोग भी अनेक सम्प्रदायों जैसे सिख, जैन, बौद्ध इत्यादि में बंटते चले गए। बाकी लोग भी हिन्दुओं के नाम पर नहीं जाने जाते। उनकी पहचान होती है अगडी जाति, पिछाडी जाति, अन्य पिछाडी जाति, अनुसूचित जाति, जनजाति वगैरह। गरम का कैरियर ऊपर चढा....
गरम विजयी घोषित हुआ, मिला उसे प्रमोशन।
नरम मुस्कराते वहीं खड़ा है, नहीं कोई प्रलोभन।
मगर गरम इतने से रुकने वाला नहीं था। वह बड़ा ही महत्वाकांक्षी था। उसने अँग्रेज़ों के रूप में फ़िर भारत में आगमन किया। सरे देश पर संप्रभुता स्थापित कर जबरदस्ती अंग्रेजी भाषा को एकमात्र सरकारी भाषा बनाकर सबके ऊपर थोप दिया गया। सबने डर कर इसे अंगीकार कर लिया और कालांतर में यह पढ़े लिखों की भाषा मानी जाने लगी। अगर कोई अंग्रेज़ी बोल रहा है, तो किसी पढ़ाई के सेर्टिफीकेट की जरुरत नहीं है। इसके विपरीत नरम सन १९४७ से आजतक हाथ जोड़े नतमस्तक हो सबसे विनती किए जा रहा है। हिन्दी हमारे देश की अपनी भाषा है। आप सभी इसे अपनाए। इसका प्रयोग करें। मगर हर जगह उसे दुत्कार व गालियाँ मिल रही हैं। यहाँ तक की गृहराज्य उत्तर प्रदेश में भी अब सी बी एस ई बोर्ड से चालित अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय हर गाँव नगर में पसरते जा रहे हैं। हिन्दी विद्यालय केवल गरीब व अंगूठा छाप लोगों के लिए ही हैं। गरम फ़िर विजयी घोषित हुआ......
नरम महात्मा गाँधी के रूप में सामने आया। कई साल भाई चारे व अहिंसा का पाठ पढाता रहा। सारे भारत में नरम की जयकार होने लगी। स्वतंत्रता भी मिल गई। अब गरम उजागर हुआ। तांडव व हिंसा शुरू कर दी भारत के बंटवारे के लिए। गाँधी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। खाना पीना छोड़ दिया। अनशन पर बैठ गए। मगर विजयश्री अंततः गरम को ही मिली. भारत बँट गया. दोनो तरफ पूर्व तथा पश्चिम में काट कर छोटा कर दिया गया. गरम फ़िर विजयी घोषित हुआ......
गरम ने अपनी ताकत के जोर पे रातोरात मद्रास को चेन्नई, कैल्काटा को कोलकाता तथा बॉम्बे को मुंबई बना दिया। जबकि नरम के तीर्थराज प्रयाग - इलाहबाद के बोझ तले, तथा अयोध्या नगरी - फैजाबाद के नीचे दबे कराह रहे हैं। लक्ष्मन का बसाया लखनपुर, लखनवी नवाबों के हरम में कैद होकर रह गया। पांडवों का बसाया इन्द्रप्रस्थ, मुग़ल बादशाहों के दिली जज्बे के आगे दम तोड़ चुका है। गरम फ़िर विजयी घोषित हुआ......
नरम ने हिम्मत समेटकर बम्बई का रुख किया। गरीब नम्र यू पी के भैया को साथ लिया। सबने मिलकर हाथ मिलाया। आलीशान अट्टालिकाओं वा उँचे भवन निर्मित किए। सब्जी बेचना, टॅक्सी चलना, ठेला खीचना, बिना शर्म वा झिझक के करते रहे। टेक्सटाइल वा अन्य मिलें चलाई मजदूर बनकर। विश्व में सबसे ज़्यादा फिल्में बनाने वाले हिन्दी सिनेमा उद्योग को बंबई में स्थापित किया, एक अहिंदी भाषी क्षेत्र में। इन सबकी मेहनत रंग लाई और बंबई भारत की वित्तीय राजधानी कहलाने लगी। सबका आपस में बड़ा मेल जोल था. नरम ने सोचा आख़िर मैं सफल हो ही गया। उसी क्षण गरम शान से उठा और राज ठाकरे के शरीर में प्रविष्ट कर गया। चारों तरफ हिन्दी भाषियों की पिटाई होनी शुरू हो गयी। कई दशकों की मेहनत से निर्मित किया गया मानसिक रिश्ता गरम ने क्षण भर में नेस्तनाबूद कर दिया. गरम फ़िर विजयी घोषित हुआ ....
उपर्युक्त सारी बातों का उपसंहार यही है की "समरथ के नहि दोष गोसाईं, सारी दुनिया उन्ही की लुगाई". ताकतवर और समर्थ व्यक्ति जो भी करवाए लोग उसे करने को सहर्ष तत्पर रहते हैं. अँग्रेज़ी के पीछे लोग भाग रहे हैं, क्योंकि यह शक्तिशाली देशों में बोली जाती है. जबकि हिन्दी बोलने वाले उ प्र, बिहार इत्यादि के ग़रीब लोग हैं. पंजाबी लोग थोड़े पैसे से ताकतवर हैं, इसलिए दिल्ली में पंजाबी बोलना शान तथा बिहारी (भोजपुरी) एक गाली के समान बन गयी है. हालाँकि पंजाबी भी वही काम करता है अमेरिका या कनाडा में, जो बिहारी दिल्ली अथवा बंबई में करता है. फ़र्क केवल डालर और रुपये का है.
"नरम हमेशा पीछे रहेगा जबकि ताकतवर गरम हमेशा आगे, चाहे वो कैसा भी काम करे ग़लत या सही".
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
Good one :)
A few additional observations on my end:
You are right that "Naram" is definitely not the winner in material terms...
However, even though it seems as though "Garam" is successful, there are too many "Garam" personalities, and they end up fighting with each other and in the end destroying each other. This might give rise to a new "Garam" figure, and so it might seem as though "Garam" is winning, but it is not the same "Garam" figure that wins....
So, I think that in the end "Garam" doesn't win either... and maybe dies a lonely death... whereas "Naram" at least has some friends with him during the end days... but neither is a winner in material terms...
Regards,
Vandana
bahut badhiya likha gaya hai overall hamesa akhil satya yahi hai ki vijayee satya hi hota hai chahe wah ram rawan men ya pandav kaurov men ya aur bhi anek jagahon par
rajiv
bahut badhiya likha gaya hai overall hamesa akhil satya yahi hai ki vijayee satya hi hota hai chahe wah ram rawan men ya pandav kaurov men ya aur bhi anek jagahon par
rajiv
Post a Comment