Oct 8, 2020

मालवीयन मीट

जैसे पतंगा हो सम्मोहित, देख जलता हुआ दिया।
विरहिणी के लिए जैसे उसका, बिछड़ा हुआ पिया।
किसी युद्धबंदी ने जैसे, अपना वतन पा लिया।
वैसे हम भूतपूर्व-छात्रों के लिए, होता ये मालविया।

मित्रों के संग घूम टहल , गन्ना अमरुद उड़ाते थे।
गोलघर में तितलियों के पीछे, लम्बी रेस लगाते थे।
कुछ को खोराबार के जंगल ही, ज्यादा रास आते थे।
ढाबे में इतना खा लिये, बाबूलाल पैरों में गिर जाते थे।

रेलवे कंसेसन पर डीन के ठप्पे, हास्टल में ही लग जाते थे।
रेल यात्रा में सारे मालवियन, केवल हरिजन कहलाते थे।
साथी दोस्त के लिए झगडा कर, अपना सर भी फुड़वाते थे।
पास होने पर उस दोस्त से दुबारा, शायद ही मिल पाते थे।
निर्दयी वार्डेन सर्द रातों में, हमारा हीटर उठा ले जाते थे।
परीक्षा टलवाने के लिए हम भी, प्रिंसिपल तक को हड़काते थे।

एलुमनाई मीट पर मालविया में, करेंगे जबरदस्त धमाल।
पुराने दोस्त वही सारे, जो पहले मिल करते थे बवाल।
जो नहीं आ पाएँगे, सारी जिंदगी उनको रहेगा ये मलाल।
अब जीने से क्या फ़ायदा, ईश्वर तू कर दे मुझको हलाल।

जहाँ चार यार मिल जायें, वहीं बच्चन की रात हो गुलजार।
क्या होगा नजारा जब, इकट्ठे होंगे एक सौ चालीस दिलदार।
असमान रश्क करेगा जब, कैम्पस में खिलेंगे हम दमदार।
मुकेश अम्बानी भी नहीं दिखेगा, तब हमसे ज्यादा मालदार।

कह डी के कविराय, भला हो दुनिया के रखवाले।
एक ही झटके में तूने, सारे बिछड़े यार दे डाले।
मारीशस का स्वर्ग क्या, तोड़ भागूं इंद्रलोक के ताले।
मिल जाय गर बिछड़े यार संग, जाम के चंद प्याले।

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