हिमशिखर उत्तुंग उठा कपाल,
चरण पखारता सागर विकराल,
गंगा यमुना संचारित रक्तनाल,
असम चायबागान लहराते केशबाल,
अद्भुत सोनचिरैया ऐसी, पूरी दुनिया थी अभिलाषी.
ज्ञान ध्यान की ज्योति जलाते, ऐसे हैं हम भारतवासी.
सत्य अहिंसा के अनुयाई, कहते सबको भाई-भाई,
बुरी नजर वाले का लेकिन, हिसाब चुकाते पाई-पाई
गौतम गाँधी नानक हैं हम , दूसरा थप्पड़ खाते तड से.
शिवाजी राणा चाणक्य भी है, मट्ठा डाल सुखा दे जड़ से.
शांति पुरष्कार दुसरे ले जाते, विश्व बंधुत्व के हम विन्यासी.
किया न आम्रमण कभी किसी पे, ऐसे हैं हम भारतवासी.
इस शांतिप्रियता को अरि ने, हमारी कमजोरी समझ लिया,
अन्नपूर्णा पावन धरती को, रक्तिम रणभूमि बना दिया.
हिन्द का खड्ग प्रलय बन टूटा, शत्रु-शीश से पाट दिया
लेकिन पीछे से जयचंदों ने, पीठ में छुरा उतार दिया.
जीत सके ना कोई इनसे, अपनों से हारे ये अघनासी
गद्दारों की कमी नहीं है, ऐसे हैं हम भारतवासी.
इतिहासों से सबक न लेते, छुद्र स्वार्थ में लिप्त हुए,
अपनी ही जड़ खोद रहे हैं, जांत-पांत में बंटे हुए,
पंजाब सिंध बंग कश्मीर, पूरा कहाँ रहा अब देश में.
दुश्मन आ के सब खा जाए, ना जाने किस वेश में.
रणवीरों हुंकार भरो अब, त्यागो तंद्रा और उदासी,
कलम से भी तलवार बनाते, ऐसे हैं हम भारतवासी.
एक से एक जुडो अब वीरों, जांत-पांत का नाश करो,
भाषा बोली क्षेत्र से ऊपर, भारत माँ को याद करो,
गद्दारों को ढूंढ निकालो, उनका पर्दाफ़ाश करो,
शत्रुदल काँपे अंदर बाहर, प्रत्यंचा टंकार करो,
अफजल कसाब अब निकट न आवैं, धधकी महादेव की काशी,
त्रिनेत्र-ज्वाला बन भस्मित कर जाते, ऐसे हैं हम भारतवासी.
सर्वशक्तिमान बने अब भारत, कर लो ऐसा काम शुरू,
धरती के कण-कण में गरजें, होकर फिर से विश्व गुरु,
अब न रहे कोई भूखा नंगा, खुशहाली का राज रहे.
धर्म अर्थ शान्ति शक्ति का, भारत में आगाज रहे.
ज्ञान-विज्ञान में हो पारंगत, जहाँ भी जाए हिन्द निवासी.
उठ खड़े सभी सम्मान से बोलें, यही है देखो भारतवासी.
- जय हिन्द.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment