क्या अहिंसा नामक अस्त्र वास्तव में अमोघ है?
सिक्खों के गुरु नानक ने अहिंसा व शांति का पाठ पढ़ाया। किन्तु दसवें गुरु
के आते आते उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। सो गुरु गोविंद सिंह जी ने अहिंसा का
परित्याग करते हुये, शस्त्र व मिलिटेंसी की शिक्षा दी अपने
प्यारों को। उसका परिणाम भी सुखद हुआ। महाराज रंजीत सिंह का साम्राज्य
सुदूर काबुल तक जा पहुँचा। वो काबुल जहाँ से विश्व की महाशक्तियाँ रूस व अमेरिका
धूल चाट के वापस चली गईं, हरि सिंह नलवे की खड्ग से काँपता था। अफगानी मर्दों ने भी औरतों की तरह सलवार पहनना आरंभ कर दिया। तब से आजतक वही पहन रहे।
भारत के जनमानस में यह बात पैठ कर दी गई कि अंग्रेज भागे हैं गाँधीजी के
‘भारत छोड़ो’ नारे से। पुस्तकों में रेडियो से व अन्य मीडिया के साधनों से यही
प्रचारित किया गया, क्योंकि सत्ता उन्हीं काँग्रेसियों के हाथ में
थी। नेहरू आकंठ अहिंसक गाँधीवादी बन गये। भारतीय सेना के जवानों से बूट पोलिश
करवाने लगे। सेना को अस्त्र शस्त्र से वंचित कर दिया। विश्व का नेता बनने चले थे
अहिंसा का पाठ पढ़ा के। चालाक चीन ने इसका लाभ उठाया। पीछे से छुरा भोंक दिया। अब
हमारे चाचा शिवाजी की तरह चालाक तो थे नहीं, कि अफजल खान में छुरा के बदले बघनख उतार देते। इन्हें अक्ल आई लाखों भारतीय
सेना के जवानों की बलि देकर। बेचारे गाजर मूली की तरह काट दिए गए। उनकी बंदूकें
जंग खा गई थीं। चली ही नहीं। सीमा तक पहुँचने के लिए सड़कें ही नहीं बनाई गई थी।
इतनी बुरी तरह हताश हुये नेहरू कि हृदयाघात से चल बसे। अहिंसा का नशा उतर चुका था।
पीढ़ियाँ तुम्हारी करनी पे पछताएंगी।
May 27, 2024
अहिंसा
May 15, 2024
पंच परमेश्वर-2
अलगू चौधरी व जुम्मन शेख के न्याय से पंच परमेश्वर की प्रसिद्धि दिगदिगंत में चहुँ ओर देदीप्यमान हो गई। बड़े बड़े न्यायविद उस गाँव में सलाह मशविरा करने आने लगे। एक बार तो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से भी विदेशी दल पधार चुका था। आठ दशक बीत गये। एक दिन उनके सम्मुख बड़ा ही विचित्र केस आया। एक जीर्ण शीर्ण काया में दुखियारी महिला गुहार लगाते पहुँची। सरपंच के सम्मुख खड़े हो विलाप करने लगी। सरपंच घर से बाहर आकर बोले,
“मेरा
नाम भारत माता है। मैं बड़ी दुखियारी महिला हूँ। मेरे साथ बड़ा अन्याय हुआ है।“
“किसने
किया यह अन्याय और कब हुआ?”
“बड़ी
लंबी व्यथा कथा है सरपंच। आप पंचायत बुलाइए और न्याय कीजिये”।
“ठीक
है, आने वाले मंगलवार को मंगल वेला में प्रातःकाल 10 बजे पंच परमेश्वर विराजेंगे
नीम तले उस चबूतरे पे। आप निचिंत रहिये। यदि आपकी व्यथा सच्ची है, तो आपको न्याय
अवश्य मिलेगा। इससे पूर्व भी हम एक वृद्ध खाला को न्याय दे चुके हैं।”
“महोदय, मेरी इस हाल के जिम्मेदार
बहुतेरे लोग हैं। वो सब यहाँ नहीं आ सकते। उनमें से अधिकतर तो परलोक सिधार चुके
हैं”।
“यह कैसा केस है माई? बिना विरोधी
पक्ष के न्याय कैसे होगा?”
“यह सब आप देखिये। किन्तु यदि न्याय
नहीं कर सकते तो हाथ खड़े कर दीजिए”।
माई ने कहना आरंभ किया, ”हजारों वर्षों से मैं पददलित होती रही। विदेशी आक्रान्ताओं ने अनगिनत बार मुझे लूटा व अपमानित किया। अंतिम लुटेरे आए अंग्रेज। किसी तरह सैकड़ों वर्षों की क्षोभ व पीड़ा पश्चात अंततः वो समय आया जब मुझे कैद से मुक्ति मिलने की घोषणा हुई। मेरे कई सच्चे सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी मेरे लिए। मैं स्वतंत्र होने जा रही थी”।
“तब क्या समस्या है माई? अब तो तुम
मुक्त हो। जैसे चाहो रहो”, एक पंच ने पूछा।
“यही तो विडंबना है। कहानी मुक्ति
द्वार से ही आरंभ होती है। अन्याय उस कालखंड में व उसके पश्चात ही हुआ”।
“तनिक विस्तार में बताओ। हम बड़े
असमंजस में हैं”।
“यदि किसी घर में दो पुत्र हैं, और
पिता जमीन का बंटवारा करे तो उनका परिवार कैसे बँटेगा?”, माई ने पूछा।
“सीधी सी बात है, दोनों बेटों का
परिवार उनके साथ रहेगा”।
“और उनका हक किस जमीन पर होगा?”
“क्या माई, कैसी बात करती हो? दोनों
बेटों का परिवार उनके साथ ही जाएगा और उनकी पिता की संपत्ति पर उनका भी हक होगा”।
“तो फिर मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ?
मेरी जमीन के टुकड़े किये गये। छोटा बेटा अपना हिस्सा लेकर अलग हो गया। मैं बड़े
बेटे के साथ रह गई। इसी बड़े बेटे के साथ छोटे बेटे के परिवार के लोगों को भी अधिकार
मिल गया कि वो बड़े बेटे की जमीन पर भी रह सकते हैं। उनकी मर्जी, चाहे इस जमीन पर रहें
या उस जमीन पर। दोनों पर उनका अधिकार है। जबकि छोटे के यहाँ बड़े का परिवार नहीं रह
सकता। वहाँ उनका कोई हक नहीं। कुछ लोग वहाँ रहना चाहते थे, तो उनकी हत्या कर दी
गई, बहु बेटियों का बलात्कार हो गया”।
पंचायत में सन्नाटा छा गया।
माई ने कहना जारी रखा, ”मैं न्याय
मांगती हूँ। मेरे बड़े बेटे की जमीन पर छोटे के परिवार वालों का कोई हक न रहे।
उन्हें उनकी संख्या के हिसाब से अधिक ही जमीन दे दी गई थी। पैसे (ट्रेजरी) का भी
बंटवारा हुआ था संख्या के हिसाब से। दोनों का परिवार पूरी तरह से अलग रहे अपनी अपनी
जगह। कोई घाल मेल न हो”।
सभी पंच सन्नाटे में बैठे थे। न्याय
के प्रति निष्ठावान तो थे, किन्तु कैसे दूध का दूध व पानी का पानी अलग करें, समझ
नहीं आ रहा था।
माई बोली, “जो करना है, सामने से करो।
पीठ पीछे छुरा भोंकना हमारे संस्कारों के विरुद्ध है। आमने सामने युद्ध करो”।
“ऐसे किसी संस्कार को मैं नहीं मानता।
प्यार व युद्ध में सब जायज है”।
“तो ठीक है, हमें भी यह स्वीकार है।
हम भी तुम्हें घर में घुस के मारेंगे। यह हम सब आपस में निपट लेंगे। पंचों से बस
मेरी यही माँग है कि जो गलती 80 वर्ष पहले की गई थी, उसे सुधारा जाए”।
“कौन सी गलती?”, पंच ने पूछा।
“वही गलती जो मैंने आरंभ में ही कहा
है”।
“कृपया पुनः बतायें”।
“तो सुनिए, उसके परिवार वाले जो यहाँ
भी रह रहे हैं, यहाँ से चले जाय। उन्हें उनकी जमीन उन्हीं की डिमांड पे उनकी
संख्या के अनुपात से दे दी गई थी। उनका हमारी जमीन पर रहना व हक जताना सरासर गलत
है”।
तभी छोटा चिल्लाया, “हमारे परिवार को
यहाँ रहने का अधिकार बापू व चाचा ने दिया था”।
पंच ने पूछा, “माई आपके पति ने यह
फैसला किया था, तो हम कैसे दखल दे सकते हैं?”
“वो मेरे पति नहीं थे। पुत्र थे अन्य
समस्त पुत्रों की मानिंद। मेरा कोई पति नहीं है। मैं उन देवियों में से हूँ जिनके
पति नहीं होते, जैसे दुर्गा काली भवानी। यह बंटवारे के समय की राजनीति की उपज है।
तथाकथित बापू व चाचा ने इस छोटे का पक्ष लिया। इसे बहुत कुछ दिया। इसे अपना माना
परंतु इसने उन्हें कभी अपना नहीं माना। इसके लिए जिन्न ही सब कुछ था”।
“यह जिन्न कौन है? क्या इसमें आसुरी
शक्तियाँ भी मिली हुई हैं?”, पंच हुये हैरान।
यह वही जिन्न है महामहिम, जिसने मेरे
परिवार में दरार डाली। दोनों भाइयों में झगड़ा कराया। बंटवारा कराया। परिवार के
लाखों लोग मारे गये, बेघर हुये। लेकिन उसे इसकी सजा मिली। बराबर मिली। बंटवारे के
एक वर्ष में ही वो कैंसर से मर गया। बड़ा ही कमजर्फ इंसान था”।
छोटा दहाड़ा, “चुप रह बुढ़िया। वो हमारे
कायदे आजम हैं”।
पंच ने छोटे को चेताया, “ऐसी वृद्ध
महिला को बुढ़िया कह के संबोधित न किया जाए। वरना आपके ऊपर पंचायत मानहानि का दंड
आरोपित होगा”।
“वो तो ठीक है, किन्तु मेरे परिवार के
लोग जो 80 वर्ष से वहाँ रह रहे हैं, वहीं रहेंगे। मेरे पास अपने वर्तमान परिवार के
लिए ही खाना नहीं है। जबकि इनके भंडार भरे पड़े हैं। ये विश्व की पाँचवीं महाशक्ति
बन चुके हैं, और हम नीचे से पाँचवीं सबसे गरीब फटेहाल कंगाल। हमारे यहाँ एक बोरी
आटे के लिए भी दो चार कत्ल हो जाते हैं”, छोटा बोला।
“तो फिर तुम अलग ही क्यों हुये? न अलग
होते तो इतने बदहाल क्यों होते?”, पंचों ने प्रश्न रखा।
“अलग हुये थे अपने मजहब के लिए। पूरी
कायनात में हममजहबियों को ही जीने का हक है। अन्य किसी को नहीं”।
“यह कहाँ लिखा है? धरती माता अपने
समस्त पुत्रों को समान रूप से अधिकार देती है रहने खाने क लिए”।
“यह हमारी आसमानी किताब में लिखा है”।
तभी माई ने हस्तक्षेप किया, “पंचों,
यह कपूत कुछ विदेशी आक्रान्ताओं के झांसे में आ गया। हमारी प्राचीन सनातन संस्कृति
को त्याग उनकी आसमानी किताब पढ़ने लगा। अपना धर्म ही त्याग दिया”।
“खैर यह उसका निजी मामला है। हम इसमें
कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते”, एक पंच ने कहा।
“तो ठीक है, लेकिन मेरा घर तो खाली
करवाइए इसके परिवार वालों से”, माई ने आर्तनाद किया।
Nov 5, 2023
पिता
बैटिंग की जब बारी आती, सुनता उनकी चीख
वरना कितना भी माँगोगे, नहीं मिलेगी भिक्षा
नाई से कटवा ही देते, जाने क्यों होती उनको टेंशन
मेधावी आवारा हरेक विद्यार्थी, भाता था ये सबको
मौज मस्ती का दौर चला, जिंदगी हुई मस्त बिंदास
पिक्चर देखो नगर में घूमो, बने रहो बकलोल
पढ़ने से फुरसत न मिलेगी, पिता को रहे बनाते उल्लू
पिता ने तय किया लगन, पत्नी भी आ गई
साल वर्ष भी न मिलता, नहीं शिकायत पिता था सुलझा
पिता आपके नहीं रहे अब, ले लो फूल चढ़ाओ माला
कैसा पुत्र अभागा था मैं, नहीं कर सका दर्शन अंतिम
अपनी पसंद की पत्नी लाया, वर्षों जिसका रहा दीवाना
जीवन का पूर्ण निवेश, सब कुछ इसमें डाला है
रंग ढंग सब बदला दिखता, बदल गया परिवेश
एक दिन अपनी पत्नी लेकर, निकल गया परदेश
हफ्तों हफ्तों खबर न आए, सन्नाटों का सूना मेला
इसी योनि में वापस मिलता, व्याज सहित वो फंड
आज उपेक्षित मुझे भी कर रहा, मेरा ही अपना अंश
बुरा बने स्वयं पर मुझे उकेरा, कैसा था अद्भुत दान
नित्य लिखूँगा चिट्ठी तुमको, भेजा करो एक यमदूत
आजा पिता बरसों हो गये, न गया सिनेमा हाल
प्रायश्चित हेतु कालचक्र तुम्हें, वापस नहीं ले जाता
इसी मिट्टी में जन्मे हैं, कितने ही श्रवण कुमार
Aug 2, 2023
घोंसला
काम ही काम करे दिन रात
तिनका चुनकर बुने घोंसला
बैठ दो घड़ी करे न बात
विधाता ने दिया नहीं एक भी हाथ
चोंच से ही रच दिया एक ऐसा आशियाना
उच्च श्रेणी इंजीनियर भी हो जाये दीवाना
जब मादा गौरैया ने जन दिए चार अंडे
माँ अंडों को सेती रहती फैलाए दोनों डैने
पिता बाहर से चुनकर लाता दाना और चबैने
उनकी सेवा में ऐसे रमे काम न भाये दूजे
एक जाये जब दाना लाने तो दूजा करे रखवाली
पिता हो विभोर जब बच्चों को खाना दे घरवाली
सरपट झटपट निकल गये, तीन हफ्ते यूँ खुशगवार
आओ बाहरी दुनिया दिखा दूँ, अब तुम हुये सयाने
पर फैला के उड़ना ऐसे, माता-पिता लगे बतलाने
साँझ ढले न वापस आये, चिंता लगी भयंकर
सारी रात बेचैन पड़े वो, रहे बदलते करवट पलपल
खबर मिली अब ना आयेंगे, चला गया बच्चों का दलबल
मुँह में गया न एक भी दाना, दुनिया हो गई रीत
चिड़ा चिड़ी ने अवसादों में, छोड़ दिया पूरा घर बार
कैसे रह पाएंगे इसमें, बच्चों की याद करेगी बीमार
सुखा दिए सब गम के आँसू, पूरी पूरी मात्रा में
रम गये फिर से उसी काम में, तिनका तिनका जुटाने में
बिना हाथ के उसी चोंच से, एक नया मकान बनाने में
छोड़ो उड़ने दो बच्चों को, सीख लो पक्षियों वाला तरीका
Jul 18, 2023
हिन्दुत्व
सारे धर्म वास्तव में क्या है, चलो मीमांसा कर लें आज
विश्व के विभिन्न धर्मों के, नियम
कानून बताते जाते
क्या करना क्या नहीं करना, सबका
सीमांकन करवाते
हिन्दू धर्म की बात चली तो, बोले पण्डित
से पादरी काजी
हम करते हैं इसकी व्याख्या, तुम करते
जाओ हाँजी नाजी।
बुतपरस्ती ही करते तुम सब, उसके बिना
चले न काम
रामायण का वाचन करते, माला जपते राम
और श्याम
पण्डित बोले नाजी नाजी, वेदों में नहीं
सगुण साकार
निर्गुण कबीर रैदास जायसी, महिमा गाते
ब्रह्म निराकार
घण्टा और घड़ियाल बजाते, भजन कीर्तन से
करते हल्ला
बिना शोर भगवान मिलें न, उठकर बोल पड़ा
एक मुल्ला
सहजयोग में गहन ध्यान हो, परम शांति की
चिरनिद्रा निलय
अँतर्मुखी शक्ति प्रज्वलन से होता,
कुण्डलिनी का ब्रह्म विलय
माँस मछली खाते नहीं, शाकाहारी का बन
गया रिवाज
सबसे बड़ा हिन्दू तो वो है, जो न खाये
लहसुन व प्याज
बंगाली आसामी नेपाली, खाते माँसाहार
बारहों मास
दुर्गापूजा नवरात्रि पे भी, बलि से
बुझती देवी तास
ऐसी चर्चा सुनकर भैया, धर्मगुरुओं का
गरम हुआ मिजाज
परिभाषित हम करें तो कैसे, कोई तो
युक्ति बताओ आज
धीरज रख के ध्यान धरो अब, पण्डित का
निकला उद्गार
हिन्दुत्व एक अनोखा यंत्र है, जिसके
तारों से हो यलगार
सनातन है नाम इसका, आदि है न अंत
बाँध सके न परिभाषा, महिमा इसकी अनंत
ऊपर विशाल नीला व्योम, कहाँ है उसका
अंत
कालचक्र कब हुआ आरंभ, कब होगा घूमना
बंद
तो इसको रचने वाला ईश्वर, कैसे बंधेगा
तुमसे दैया
बालयोगी श्याम को भी, न बाँध सकी थी
उसकी मैया
निर्गुण सगुण हिंसक अहिंसक, या हो
मांसा शाकाहारी
नास्तिक भी हिन्दू कहलाकर, हो जाते हैं
बलिहारी
सब पंथों के ग्रंथों की बातें, पत्थर की
होय लकीर
नहीं बदलते इंच मात्र, जो कह गये उनके
फकीर
समाज सुधार का अल्प प्रयास, मार बना देगा
हलवा
विश्व के कितने कोनों से, निकल पड़ेगा ढेरों
फतवा
मानव समाज के हर सुधार का, सनातन करता
स्वागत
नानक महावीर गौतम कबीर, न जाने कितने आवत
बहुविवाह बालविवाह विधवाविवाहनिषेध, सती
दहेज उत्पीड़न
संसद में कानून बना, इन कुरीतियों का कर
डाला उन्मूलन
जहाँ विश्व के अन्य धर्मों में,
पृथ्वी पर ईश्वर दूत ही आये
जीसस गॉड का तो मोहम्मद अल्ला का,
पैगाम यहाँ सुनाये
वहीं सनातन आस्था में देखो, ईश्वर ने
स्वयं लिया अवतार
राम श्याम वामन वराह नरसिंह बनकर, आते
गए दस बार
भगवद्गीता श्लोकों के ज्ञान का,
विज्ञान भी मानता सानी
क्योंकि यह साक्षात ईश्वर के मुख से,
है निकली हुई वाणी
वसुन्धरा की सनातन संस्कृति, विश्व-गुरुओं
का केंद्र बिन्दू है
सनातनियों क्यों इतना सकुचाते ही, गर्व से कहो हम हिन्दू हैं
Jul 17, 2023
नया माल
पीते शराब
खाते कबाब
शौकीने शबाब
हुस्न को परखते थे
जुल्फों में उलझते थे
किस रक्कासा की हैं जुल्फें
सूँघ के ही बकरते थे
ये है महरुन्निसा की
ऊपर वाली चमेलीबाई
दाहिने है रुखसाना की
तो बाएं पड़ी है जोहराबाई
बीरबल का पोता लखनऊ आया
मसखरी करने का शौक चर्राया
गधी के बाल थैली में भरवाया
नवाब के सामने पेश करवाया
सूँघ के नवाब होते रहे हलकान
बढ़ती गई खीझ हुये परेशान
फिर जोर से चिल्लाये, नवाब ने अता फरमाया है
कोचवान इरफान, बग्घी निकालो, लखनऊ में नया माल आया है
Jun 17, 2023
लखनऊ मीट
चाह नहीं वकील बन झूठ का पुलिन्दा फैलाऊँ
चाह नहीं प्रोफ़ेसर बन क्लासरूम में ही रह जाऊं
चाह नहीं डाक्टर बन आधी रात को दौड़ा जाऊं
चाह नहीं आईएएस बन नेताओं से गाली खाऊँ
रेल यात्रा में सारे मालवियन, केवल हरिजन कहलाते थे।
विरहिणी के लिए जैसे उसका, बिछड़ा हुआ पिया।
किसी युद्धबंदी ने जैसे, अपना वतन पा लिया।
वैसे हम भूतपूर्व-छात्रों के लिए, होता था मालविया।
मित्रों के संग घूम टहल , गन्ना अमरुद उड़ाते थे।
गोलघर में तितलियों के पीछे, लम्बी रेस लगाते थे।
कुछ को खोराबार के जंगल ही, ज्यादा रास आते थे।
ढाबे में इतना खा लिये, बाबूलाल पैरों में गिर जाते थे।
निर्दयी वार्डेन सर्द रातों में, हमारा हीटर उठा ले जाते थे।
साथी दोस्त के लिए झगडा कर, अपना सर भी फुड़वाते थे।
पास होने पर उस दोस्त से दुबारा, शायद ही मिल पाते थे।
परीक्षा टलवाने के लिए हम भी, प्रिंसिपल तक को हड़काते थे।
May 27, 2023
वो बचपन
परिवार-बोझ में व्यस्त पिता को भी कहाँ निहारा था
मातृ-छाया विहीन, समाज की ज्वाला तले संघर्षरत
जीवन पथ पर दो मासूम बहनों का मिला सहारा था
चूल्हा फूंकते राखरंजित नेत्र, रण-बाँकुरी दो लड़कियाँ
चाय नाश्ता सबको देकर, मध्यान्ह पकवान तैयार किया
विद्यालय से आकर रात्रिभोजन, क्या क्या बतलायें मियाँ
वरना गणित विज्ञान पढ़ वो डाक्टर इंजीनियर बन जाती
दूसरे ही पल फिर भूल बिसर के, एक दूजे पे मरते थे
आज एक के पीछे दो माँ-बाप, चम्मच लिए फिरते हैं,
कह डीके कविराय, भला कैसे हम वो जीवन जीते थे
May 15, 2023
कलयुगी असुर
क्षीर सागर में नाग-शैया पे लेटे हुये नारायण की कमर में अकड़न हो चली थी। लक्ष्मी जी ने बहुतेरे प्रयास किये पैर दबा दबा के, कथा सुना सुना के, किन्तु बोरियत दूर न हो पा रही थी।
“क्यों क्या हुआ?”
“ऐसा क्यों हो रहा? इंद्रदेव ने हमारे बनाये नियमों का उल्लंघन क्यों किया?”