May 27, 2024

अहिंसा

 

क्या अहिंसा नामक अस्त्र वास्तव में अमोघ है?
क्या वास्तव में अंग्रेज जैसी आधी दुनिया पे राज करने वाली महाशक्ति अहिंसक चरखे से डर के भाग गई?
क्या हमारे सनातन संस्कृति में अहिंसा का पाठ वर्णित है?
 
हिन्दू धर्म में भगवान ने दस अवतार लिये। किसी ने अहिंसा के मार्ग पे चलते हुये दानवों के आतंक का अंत नहीं किया। राम ने असंख्य असुरों का संहार किया लंका पहुँचने से पहले ही। लंका में तो सारी राक्षसी सेना का ही वध कर दिया। कृष्ण ने तो धनुष बाण रख चुके अहिंसक होते अर्जुन को शस्त्र उठाने हेतु पूरे गीता का प्रवचन सुना डाला।
 
परशुराम ने अस्त्र उठाया, नरसिंह ने हिरनाकश्यप का वध किया। शिव तो ताण्डव करने और प्रलय लाने के लिए जाने ही जाते हैं। दुर्गा, काली जैसी देवियों ने भी अस्त्र उठाए हैं। लोग उदाहरण देंगे, अहिंसा परमो धर्मः। किन्तु चालाकी से दूसरी पंक्ति छुपा दी जाति है, धर्म हिंसा तथैव च। पूरा अर्थ है,
 
अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है,
धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है !!
  
मैं यह नहीं कहता कि सर्वदा हिंसा ही करते रहो, किन्तु यह अवश्य कहता हूँ जिसको जो भाषा समझ आए उसे वही समझाओ। शेर चीता बाघ हिंसा पर जीता है, गधा घोड़ा हाथी शाकाहारी हैं। तदपि शेर ही वन का राजा है, उससे चार गुना बड़ा व बली हाथी नहीं। किसी को शेर टाइगर बोल दो वो खुश हो जायगा। किन्तु भैंसा घोड़ा गधा बोलकर तो देखो।
 
जब तक हमने इस आर्य भूमि पर अपने ईश्वर के संदेशों का अनुसरण किया, कोई वाह्य उजड्ड आक्रमणकारी घुस नहीं पाया। विश्व विजेता सिकन्दर भी यहाँ से पराजित हो वापस हुआ और अपने घर तक न पहुँच पाया। सेल्यूकस को अपनी पुत्री भेंट करनी पड़ी चन्द्रगुप्त को।
 
फिर एक महानुभाव को बोधिवृक्ष तले महाज्ञान प्राप्त हो गया। अहिंसा का ज्ञान। कोई कुछ भी कहे या करे, उसके ऊपर आक्रमण न करो। सब पे दया करो। जीव हत्या पाप है। फिर भी कुछ न होता, किन्तु अनहोनी हो ही गई। सम्राट अशोक कलिंग युद्ध पश्चात इनके चक्कर में आ गया। अपने पूरे परिवार व दरबारियों संग अहिंसक बौद्ध बन गया। यथा राजा तथा प्रजा। पूरा मगध राज्य बौद्ध बन गया। बस यहीं से आरंभ हुआ भारत का काला इतिहास। राजाओं ने शस्त्र त्याग दिये, तो बाहरी आक्रमणकारी आकार उत्पात मचाने लगे भारत में। तैमूर चंगेज नादिरशाह गजनी गोरी सबने लूटा। यह सिलसिला अंग्रेजों तक चलता ही गया। जितनी ऊर्जा अशोक ने लंका, कंबोडिया, तिब्बत, चीन जापान में लोगों को बौद्ध बनाने में लगाई, उतनी सनातन धर्म के प्रसार पे लगा दी होती तो आज हिन्दू मात्र भारत में सिमट के न रह गया होता।
 
ये बौद्ध के अनुयायी अजब गजब ही हैं। कहते हैं अहिंसा मत करो, किन्तु माँस भक्षण करते हैं। गोमांस तक खाते हैं। पूछो क्यों, तो लचर सी दलील देंगे, हम जीव हत्या नहीं करते लेकिन कोई अन्य मार दे तो खा लेंगे। नेपाल में गोहत्या पे प्रतिबंध है। लेकिन वही नेपाली मेरे साथ जर्मनी गये, तो बुद्धिस्ट नेपाली बीफ खा रहे थे।
सिक्खों के गुरु नानक ने अहिंसा व शांति का पाठ पढ़ाया। किन्तु दसवें गुरु के आते आते उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। सो गुरु गोविंद सिंह जी ने अहिंसा का परित्याग करते हुये, शस्त्र व मिलिटेंसी की शिक्षा दी अपने
प्यारों को। उसका परिणाम भी सुखद हुआ। महाराज रंजीत सिंह का साम्राज्य सुदूर काबुल तक जा पहुँचा। वो काबुल जहाँ से विश्व की महाशक्तियाँ रूस व अमेरिका धूल चाट के वापस चली गईं, हरि सिंह नलवे की खड्ग से काँपता था। अफगानी मर्दों ने भी औरतों की तरह सलवार पहनना आरंभ कर दिया। तब से आजतक वही पहन रहे।
 
लेकिन हाय रे विधाता, एक और अहिंसावादी आ गया। भारतीय जनमानस को प्रभावित भी कर गया। अहिंसा व चरखा चलाकर लोगों को लगा वो अंग्रेजों को डराकर भागा देंगे। भगत, राजगुरु, सुभाष, आजाद जैसे शस्त्रधारी से अंग्रेज तंग थे, बहुत परेशान थे। काकोरी ट्रेन ही लूट ली गई थी। तभी कोढ़ में खाज हो गया। द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया। कई वर्ष चले इस युद्ध ने ब्रिटानिया साम्राज्य की कमर तोड़ दी। उनमें दम नहीं बचा था कि भारत के क्रांतिकारियों से लोहा ले सके। आधे से अधिक सैनिक विश्व युद्ध में मरे जा चुके थे। इंडिया गेट पे उकेरे नाम इसकी गवाही देते हैं। अतः अंग्रेजों ने अपना बोरिया बिस्तर बाँध के खिसक जाना ही उचित समझा। बस दो वर्षों के अंदर ही वो भारत छोड़ के भाग लिए।
 
भारत के जनमानस में यह बात पैठ कर दी गई कि अंग्रेज भागे हैं गाँधीजी के ‘भारत छोड़ो’ नारे से। पुस्तकों में रेडियो से व अन्य मीडिया के साधनों से यही प्रचारित किया गया, क्योंकि सत्ता उन्हीं काँग्रेसियों के हाथ में थी। नेहरू आकंठ अहिंसक गाँधीवादी बन गये। भारतीय सेना के जवानों से बूट पोलिश करवाने लगे। सेना को अस्त्र शस्त्र से वंचित कर दिया। विश्व का नेता बनने चले थे अहिंसा का पाठ पढ़ा के। चालाक चीन ने इसका लाभ उठाया। पीछे से छुरा भोंक दिया। अब हमारे चाचा शिवाजी की तरह चालाक तो थे नहीं, कि अफजल खान में छुरा के बदले बघनख उतार देते। इन्हें अक्ल आई लाखों भारतीय सेना के जवानों की बलि देकर। बेचारे गाजर मूली की तरह काट दिए गए। उनकी बंदूकें जंग खा गई थीं। चली ही नहीं। सीमा तक पहुँचने के लिए सड़कें ही नहीं बनाई गई थी। इतनी बुरी तरह हताश हुये नेहरू कि हृदयाघात से चल बसे। अहिंसा का नशा उतर चुका था।
 
उसके बाद शास्त्री जी आए। वो अहिंसा के चक्कर में न पड़े। जवान और किसान का नारा देने वाला यह ‘देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर’ मुहावरे को चरितार्थ करने वाला साधारण किसान का बेटा स्वतंत्र भारत का प्रथम युद्ध विजेता बना। ताशकन्द रूस में युद्धबंदी की मीटिंग में बिछाए षड्यन्त्र ने उनकी जान ले ली। भोजन में मिलाए गये विष ने उनकी काया नीली कर दी थी। तदपि पोस्ट मार्टम नहीं किया गया और आनन फानन में चिता जला दी गई।
 
तत्पश्चात इंदिरा गांधी सत्तासीन हुई और समग्र जीवन रूस की छत्रछाया में चलती रहीं। यही काफी है ताश कन्द में चले कुचक्र की असलियत बयान करने में। किन्तु इंदिरा की अच्छाई यह रही कि वो अहिंसा के झांसे में न पड़ीं, और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए।
 
आज भी भारत एक दोराहे पे खड़ा है। विश्व की महाशक्तियाँ इसे सशक्त नहीं होने देना चाहती। वो नहीं चाहती भारत अणु व परमाणु बम बनाए, स्पेस तकनीक में ऊंचाई हासिल करके मिसाइल बनाये, अपने उपग्रहों से सीमाओं की निगरानी करे। और उसके लिए उन विदेशी शक्तियों ने कई जयचंद पाल रखे हैं भारत में, जो अपनी ही जड़ खोदने को आतुर हैं, या तो चंद सिक्कों के लिए, या सत्ता की कुर्सी के लिए। वो आतंकवादियों को छुड़ाने हेतु केस लड़ते हैं अदालत में। हमें सजग होना है। उन्हें पहचानना है। सनातन परंपरा कायम रखनी है। राष्ट्र को विश्व गुरु बनाना है। नहीं करेंगे तो,
 
इतिहास न तुझको माफ करेगा याद रहे
पीढ़ियाँ तुम्हारी करनी पे पछताएंगी।

May 15, 2024

पंच परमेश्वर-2

 अलगू चौधरी व जुम्मन शेख के न्याय से पंच परमेश्वर की प्रसिद्धि दिगदिगंत में चहुँ ओर देदीप्यमान हो गई। बड़े बड़े न्यायविद उस गाँव में सलाह मशविरा करने आने लगे। एक बार तो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय से भी विदेशी दल पधार चुका था। आठ दशक बीत गये। एक दिन उनके सम्मुख बड़ा ही विचित्र केस आया। एक जीर्ण शीर्ण काया में दुखियारी महिला गुहार लगाते पहुँची। सरपंच के सम्मुख खड़े हो विलाप करने लगी। सरपंच घर से बाहर आकर बोले,

 “क्या बात है माई? कौन हो तुम?”

“मेरा नाम भारत माता है। मैं बड़ी दुखियारी महिला हूँ। मेरे साथ बड़ा अन्याय हुआ है।“

“किसने किया यह अन्याय और कब हुआ?”

“बड़ी लंबी व्यथा कथा है सरपंच। आप पंचायत बुलाइए और न्याय कीजिये”।

“ठीक है, आने वाले मंगलवार को मंगल वेला में प्रातःकाल 10 बजे पंच परमेश्वर विराजेंगे नीम तले उस चबूतरे पे। आप निचिंत रहिये। यदि आपकी व्यथा सच्ची है, तो आपको न्याय अवश्य मिलेगा। इससे पूर्व भी हम एक वृद्ध खाला को न्याय दे चुके हैं।”

 इए अभूतपूर्व केस को मीडिया वालों ने खूब नमक मिर्च लगा लगा के प्रसारित किया। अरसे बाद कोई केस पंच के पास आया था, वरना तो जिला, उच्च, उच्चतम न्यायालय में ही जाते थे लोगबाग। मंगलवार को ठट्ट के ठट्ट जनता आ पहुँची चबूतरे पे। मीडिया वालों ने इसके लाइव प्रसारण के लिए भी अगल बगल के वृक्षों के ऊपर कर्मी तैनात कर दिए थे, जिससे कैमरे को फूटेज सीधा मिले। कुछ विदेशी पत्रकार भी आ टपके। ठीक 10 बजे कार्यवाई आरंभ हुई।

 सरपंच ने पूछा,”माई, आपको किससे न्याय लेना है? विरोधी पक्ष कहाँ है?”

“महोदय, मेरी इस हाल के जिम्मेदार बहुतेरे लोग हैं। वो सब यहाँ नहीं आ सकते। उनमें से अधिकतर तो परलोक सिधार चुके हैं”।

“यह कैसा केस है माई? बिना विरोधी पक्ष के न्याय कैसे होगा?”

“यह सब आप देखिये। किन्तु यदि न्याय नहीं कर सकते तो हाथ खड़े कर दीजिए”।

 पंचों ने आपसी मंत्रणा की। यदि केस की सुनवाई नहीं होती तो बड़ी भद्द होगी। मुंशी जी की लेखनी से जो भी प्रसिद्धि हमें मिली थी, आज वैश्विक मीडिया के समक्ष मटियामेट हो जायगी। अतः निर्णय हुआ की केस सुन तो लिया जाय, फिर आगे देखा जायगा।

 “ठीक है माई, आप अपनी बात बोलिए। हम न्याय अवश्य करेंगे”।

 माई ने कहना आरंभ किया, ”हजारों वर्षों से मैं पददलित होती रही। विदेशी आक्रान्ताओं ने अनगिनत बार मुझे लूटा व अपमानित किया। अंतिम लुटेरे आए अंग्रेज। किसी तरह सैकड़ों वर्षों की क्षोभ व पीड़ा पश्चात अंततः वो समय आया जब मुझे कैद से मुक्ति मिलने की घोषणा हुई। मेरे कई सच्चे सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी मेरे लिए। मैं स्वतंत्र होने जा रही थी”।

“तब क्या समस्या है माई? अब तो तुम मुक्त हो। जैसे चाहो रहो”, एक पंच ने पूछा। 

“यही तो विडंबना है। कहानी मुक्ति द्वार से ही आरंभ होती है। अन्याय उस कालखंड में व उसके पश्चात ही हुआ”।

“तनिक विस्तार में बताओ। हम बड़े असमंजस में हैं”।

“यदि किसी घर में दो पुत्र हैं, और पिता जमीन का बंटवारा करे तो उनका परिवार कैसे बँटेगा?”, माई ने पूछा।

“सीधी सी बात है, दोनों बेटों का परिवार उनके साथ रहेगा”।

“और उनका हक किस जमीन पर होगा?”

“क्या माई, कैसी बात करती हो? दोनों बेटों का परिवार उनके साथ ही जाएगा और उनकी पिता की संपत्ति पर उनका भी हक होगा”।

“तो फिर मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ? मेरी जमीन के टुकड़े किये गये। छोटा बेटा अपना हिस्सा लेकर अलग हो गया। मैं बड़े बेटे के साथ रह गई। इसी बड़े बेटे के साथ छोटे बेटे के परिवार के लोगों को भी अधिकार मिल गया कि वो बड़े बेटे की जमीन पर भी रह सकते हैं। उनकी मर्जी, चाहे इस जमीन पर रहें या उस जमीन पर। दोनों पर उनका अधिकार है। जबकि छोटे के यहाँ बड़े का परिवार नहीं रह सकता। वहाँ उनका कोई हक नहीं। कुछ लोग वहाँ रहना चाहते थे, तो उनकी हत्या कर दी गई, बहु बेटियों का बलात्कार हो गया”।  

पंचायत में सन्नाटा छा गया।

माई ने कहना जारी रखा, ”मैं न्याय मांगती हूँ। मेरे बड़े बेटे की जमीन पर छोटे के परिवार वालों का कोई हक न रहे। उन्हें उनकी संख्या के हिसाब से अधिक ही जमीन दे दी गई थी। पैसे (ट्रेजरी) का भी बंटवारा हुआ था संख्या के हिसाब से। दोनों का परिवार पूरी तरह से अलग रहे अपनी अपनी जगह। कोई घाल मेल न हो”।

 तभी एक विदेशी मिडियाकर्मी चिल्लाया, “यह महिला सठिया गई है। छोटा बेटा कमजोर है, माइनॉरटी है, गरीब है। इसलिए उसे अधिक मिलना चाहिये। दोनों जगह मिलना चाहिये”।  

 माई ने प्रतिकार किया, “यह बंटवारा उसी छोटे के कहने पे ही हुआ था। यह उसी की माँग थी। उसने बड़ा ताण्डव किया था। बड़े के परिवार के बहुतेरे लोगों को मार दिया था। मैंने दोनों पुत्रों को समान रूप से पाल पोस के बड़ा किया। बंटवारे के समय दोनों समान थे, धन बल दोनों में। यदि वो निकम्मा कर्महीन निकला, तो उसकी सजा बड़े के परिवार वाले क्यों भुगते?”

 तभी कहीं से विदेशी मीडिया वालों ने छोटे बेटे को ढूँढ निकाला। वो सामने आकर बोला, “इस माई ने सन 71 में मेरे परिवार के दो टुकड़े कर दिए थे। हम दोनों का आपसी कलह था जिसमें ये कूद पड़ी और हमें हमेशा के लिए अलग कर दिया। उर्दू व बंगाली की दीवार खड़ी कर दी”।

 माई तनकर खड़ी हो गई, “यह सरासर मिथ्या आरोप है। इसने अपने कनिष्ठ बंगबंधु परिवार के लोगों पे भारी अत्याचार किये। हत्या व बलात्कार के अत्याचार से हजारों परिवार के सदस्य हमारे घर आ गये शरण लेने। हमने राम की तरह इस विभीषण को न्याय दिलाया। मुक्तिवाहिनी सेना के साथ अपनी वानर सेना भेजी युद्ध हेतु। इन्हें इनका घर वापस दिलवाया। विभीषण जैसा ही शेख मुजीब का राज्याभिषेक करवाया। लेकिन इस पापी ने राजमहल में षड्यन्त्र करके अपने गुप्तचरों से मुजीब की हत्या करवा दी”।  

 छोटा बेटा बोला, “ये माई आरंभ से ही हमारे विरुद्ध रही हैं। बंटवारे में कश्मीर हमें मिलना चाहिये था। इन्होंने बड़े बेटे को दे दिया”।

 “यह सरासर मिथ्या आरोप है। कश्मीर हमारे परिवार की संपत्ति थी ही नहीं। उस परिवार के मुखिया ने स्वयं आकर हमारे परिवार में विलय की इच्छा प्रकट की थी अपनी जमीन जायदाद समेत। किन्तु इसने उसकी आधी जमीन बलपूर्वक हड़प ली। हमने किसी तरह बाकी जमीन बचा ली। आज भी कश्मीर में इसके परिवार वाले छद्म वेश में आकर बलवा करते हैं। मासूम लोगों को मारते हैं”।

सभी पंच सन्नाटे में बैठे थे। न्याय के प्रति निष्ठावान तो थे, किन्तु कैसे दूध का दूध व पानी का पानी अलग करें, समझ नहीं आ रहा था।

 तभी माई पुनः दहाड़ी, “यह छोटा पीछे से छुरा भोंकता है। हमारे घर में घुस कर आतंकी हमले करता है। बम विस्फोट करता है। हमारे सैनिकों पे छुप के हमले करता है। हमारे परिवार के पुराने देशप्रेमी सरदार सपूतों को उकसाता है खलिस्तान नामक घर बना के अलग होने के लिए”।

 छोटा बोला, “आपने भी तो हमारे बंगालियों को अलग कर दिया था। यह उसी का बदला है”।

माई बोली, “जो करना है, सामने से करो। पीठ पीछे छुरा भोंकना हमारे संस्कारों के विरुद्ध है। आमने सामने युद्ध करो”।

“ऐसे किसी संस्कार को मैं नहीं मानता। प्यार व युद्ध में सब जायज है”।

“तो ठीक है, हमें भी यह स्वीकार है। हम भी तुम्हें घर में घुस के मारेंगे। यह हम सब आपस में निपट लेंगे। पंचों से बस मेरी यही माँग है कि जो गलती 80 वर्ष पहले की गई थी, उसे सुधारा जाए”।

“कौन सी गलती?”, पंच ने पूछा।

“वही गलती जो मैंने आरंभ में ही कहा है”।

“कृपया पुनः बतायें”।

“तो सुनिए, उसके परिवार वाले जो यहाँ भी रह रहे हैं, यहाँ से चले जाय। उन्हें उनकी जमीन उन्हीं की डिमांड पे उनकी संख्या के अनुपात से दे दी गई थी। उनका हमारी जमीन पर रहना व हक जताना सरासर गलत है”।

तभी छोटा चिल्लाया, “हमारे परिवार को यहाँ रहने का अधिकार बापू व चाचा ने दिया था”।

पंच ने पूछा, “माई आपके पति ने यह फैसला किया था, तो हम कैसे दखल दे सकते हैं?”

“वो मेरे पति नहीं थे। पुत्र थे अन्य समस्त पुत्रों की मानिंद। मेरा कोई पति नहीं है। मैं उन देवियों में से हूँ जिनके पति नहीं होते, जैसे दुर्गा काली भवानी। यह बंटवारे के समय की राजनीति की उपज है। तथाकथित बापू व चाचा ने इस छोटे का पक्ष लिया। इसे बहुत कुछ दिया। इसे अपना माना परंतु इसने उन्हें कभी अपना नहीं माना। इसके लिए जिन्न ही सब कुछ था”।

“यह जिन्न कौन है? क्या इसमें आसुरी शक्तियाँ भी मिली हुई हैं?”, पंच हुये हैरान।

यह वही जिन्न है महामहिम, जिसने मेरे परिवार में दरार डाली। दोनों भाइयों में झगड़ा कराया। बंटवारा कराया। परिवार के लाखों लोग मारे गये, बेघर हुये। लेकिन उसे इसकी सजा मिली। बराबर मिली। बंटवारे के एक वर्ष में ही वो कैंसर से मर गया। बड़ा ही कमजर्फ इंसान था”।

छोटा दहाड़ा, “चुप रह बुढ़िया। वो हमारे कायदे आजम हैं”।

पंच ने छोटे को चेताया, “ऐसी वृद्ध महिला को बुढ़िया कह के संबोधित न किया जाए। वरना आपके ऊपर पंचायत मानहानि का दंड आरोपित होगा”।

“वो तो ठीक है, किन्तु मेरे परिवार के लोग जो 80 वर्ष से वहाँ रह रहे हैं, वहीं रहेंगे। मेरे पास अपने वर्तमान परिवार के लिए ही खाना नहीं है। जबकि इनके भंडार भरे पड़े हैं। ये विश्व की पाँचवीं महाशक्ति बन चुके हैं, और हम नीचे से पाँचवीं सबसे गरीब फटेहाल कंगाल। हमारे यहाँ एक बोरी आटे के लिए भी दो चार कत्ल हो जाते हैं”, छोटा बोला।

“तो फिर तुम अलग ही क्यों हुये? न अलग होते तो इतने बदहाल क्यों होते?”, पंचों ने प्रश्न रखा।

“अलग हुये थे अपने मजहब के लिए। पूरी कायनात में हममजहबियों को ही जीने का हक है। अन्य किसी को नहीं”।

“यह कहाँ लिखा है? धरती माता अपने समस्त पुत्रों को समान रूप से अधिकार देती है रहने खाने क लिए”।

“यह हमारी आसमानी किताब में लिखा है”।

तभी माई ने हस्तक्षेप किया, “पंचों, यह कपूत कुछ विदेशी आक्रान्ताओं के झांसे में आ गया। हमारी प्राचीन सनातन संस्कृति को त्याग उनकी आसमानी किताब पढ़ने लगा। अपना धर्म ही त्याग दिया”।

“खैर यह उसका निजी मामला है। हम इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते”, एक पंच ने कहा।

“तो ठीक है, लेकिन मेरा घर तो खाली करवाइए इसके परिवार वालों से”, माई ने आर्तनाद किया।

 पंचों बड़े पशोपेश में पड़ गये। आपस में लंबी वार्ता चली। लेकिन किसी नतीजे पे नहीं पहुँच पा रहे थे। माई की बात सही तो थी, किन्तु आठ दशक पश्चात भला कैसे किसी को बेदखल किया जा सकता था। अंततः उन्होंने फैसला सुनाने के लिये एक पखवाड़े का समय माँगा, “यह अत्यंत कठिन केस है। हम एक पखवाड़े पश्चात पुनः यहीं एकत्रित होंगे। तब तक जनता जनार्दन की भी राय ली जायगी”। 

 बताइए आप सभी जनता जनार्दन, क्या निर्णय लेना चाहिये? क्या माई को अनधिकृत कब्जे से छुटकारा मिलेगा? क्या उसका घर केवल उसके परिवार वालों के लिए सुरक्षित कर दिया जायगा?

Nov 5, 2023

पिता


माँ का आँचल लगता प्यारा, पिता कठोर दरख्ती
रूखा चेहरा और सुर्ख नैन, अनुशासन की सख्ती
 
मेरे खेल उनको  न भाते, बस पढ़ने की सीख
बैटिंग की जब बारी आती, सुनता उनकी चीख
 
पढ़ना लिखना सीख के, ले लो अच्छी शिक्षा
वरना कितना भी माँगोगे, नहीं मिलेगी भिक्षा
 
लंबे बालों का शौक मुझे, हिप्पी कट में था फैशन
नाई से कटवा ही देते, जाने क्यों होती उनको टेंशन
 
सिनेमा नाटक या हो नौटंकी, भारी चिढ़ थी उनको
मेधावी आवारा हरेक विद्यार्थी, भाता था ये सबको
 
इंटरमीडियेट उत्तीर्ण होकर, पहुँच गये हम छात्रावास
मौज मस्ती का दौर चला, जिंदगी हुई मस्त बिंदास
 
पढ़ो लिखो या दिन भर खेलो, नहीं कोई कंट्रोल
पिक्चर देखो नगर में घूमो, बने रहो  बकलोल
 
चिट्ठी से बारम्बार बुलाते, छुट्टी में घर आजा लल्लू
पढ़ने से फुरसत न मिलेगी, पिता को रहे बनाते उल्लू
 
शिक्षा मेरी सम्पूर्ण  हुई, नौकरी भी लग गई   
पिता ने तय किया लगन, पत्नी भी आ गई  
 
जिंदगी की गाड़ी भाग चली, पत्नी बच्चों में ऐसा उलझा  
साल वर्ष भी न मिलता, नहीं शिकायत पिता था सुलझा
 
दस दिन के दौरे से लौटा, घर में लटका पाया ताला  
पिता आपके नहीं रहे अब, ले लो फूल चढ़ाओ माला
 
हा कान्हा ये कैसी लीला, कैसा दिया दर्द ये रक्तिम
कैसा पुत्र अभागा था मैं, नहीं कर सका दर्शन अंतिम   
 
कालचक्र का पहिया सरका, मेरा पूत  भी हुआ सयाना
अपनी पसंद की पत्नी लाया, वर्षों जिसका रहा दीवाना
 
मेरा सुपुत्र करेगा सेवा, बड़ी हसरतों से पाला है  
जीवन का पूर्ण निवेश, सब कुछ इसमें डाला है
 
रंग ढंग सब बदला दिखता, बदल गया परिवेश
एक दिन अपनी पत्नी लेकर, निकल गया परदेश
 
उड़ गया पंछी दूर गगन में, छोड़ पिता को अकेला
हफ्तों हफ्तों खबर न आए, सन्नाटों का सूना मेला  
 
अपने पिता से किये कर्मों का, आज मिल रहा दंड
इसी योनि में वापस मिलता, व्याज सहित वो फंड
 
महीनों नहीं लिखता था पत्र, देता रहा पिता को दंश
आज उपेक्षित मुझे भी कर रहा, मेरा ही अपना अंश 
 
पिता की कड़वी सीखों का, मुझको आज हुआ है भान
बुरा बने स्वयं पर मुझे उकेरा, कैसा था अद्भुत दान
 
कैसे करूँ पिता मैं तेरी सेवा, चले गये बन के अवधूत
नित्य लिखूँगा चिट्ठी तुमको, भेजा करो एक यमदूत
 
त्याग दिया हिप्पी का बाना, रख लिये छोटे बाल
आजा पिता बरसों हो गये, न गया सिनेमा हाल   
 
पिता के कठोर सत्कर्मों का, आत्मबोध जब आता
प्रायश्चित हेतु कालचक्र तुम्हें, वापस नहीं ले जाता 
 
पिता कैसे हो हो जाता है, इतना बोझिल दुश्वार
इसी मिट्टी में जन्मे हैं, कितने ही श्रवण कुमार

Aug 2, 2023

घोंसला

 

तपती गर्मी या हो बरसात
काम ही काम करे दिन रात
तिनका चुनकर बुने घोंसला 
बैठ दो घड़ी करे न बात
 
दो युगल पक्षियों का अनोखा साथ
विधाता ने दिया नहीं एक भी हाथ 
चोंच से ही रच दिया एक ऐसा आशियाना
उच्च श्रेणी इंजीनियर भी हो जाये दीवाना
 
भूल गये दर्द गाड़ दिए खुशियों के झंडे
जब मादा गौरैया ने जन दिए चार अंडे
माँ अंडों को सेती रहती फैलाए दोनों डैने
पिता बाहर से चुनकर लाता दाना और चबैने
 
दुनिया सिमट गई जब निकले प्यारे चूजे
उनकी सेवा में ऐसे रमे काम न भाये दूजे
एक जाये जब दाना लाने तो दूजा करे रखवाली
पिता हो विभोर जब बच्चों को खाना दे घरवाली
 
प्यारे बच्चों के कलरव से, गुंजित रहा भरा परिवार
सरपट झटपट निकल गये, तीन हफ्ते यूँ खुशगवार
आओ बाहरी दुनिया दिखा दूँ, अब तुम हुये सयाने
पर फैला के उड़ना ऐसे, माता-पिता लगे बतलाने 
 
दसवें दिन वो चारों चूजे, घर से निकले उड़कर
साँझ ढले न वापस आये, चिंता लगी भयंकर
सारी रात बेचैन पड़े वो, रहे बदलते करवट पलपल
खबर मिली अब ना आयेंगे, चला गया बच्चों का दलबल
 
सूना हुआ घोंसला उनका, रहा नहीं कलरव संगीत
मुँह में गया न एक भी दाना, दुनिया हो गई रीत
चिड़ा चिड़ी ने अवसादों में, छोड़ दिया पूरा घर बार
कैसे रह पाएंगे इसमें, बच्चों की याद करेगी बीमार  
 
निकल पड़े फिर दोनों पक्षी, अपनी अगली यात्रा पे
सुखा दिए सब गम के आँसू, पूरी पूरी मात्रा  में
रम गये फिर से उसी काम में, तिनका तिनका जुटाने में
बिना हाथ के उसी चोंच से, एक नया मकान बनाने में
 
कह डी के कविराय, बुजुर्गों खुश रहने का यही सलीका
छोड़ो उड़ने दो बच्चों को, सीख लो पक्षियों वाला तरीका

Jul 18, 2023

हिन्दुत्व

एक दिन बैठे बड़ बड़ ज्ञानी, धर्मगुरुओं का हुआ आगाज
सारे धर्म वास्तव में क्या है, चलो मीमांसा कर लें आज

 

विश्व के विभिन्न धर्मों के, नियम कानून बताते जाते

क्या करना क्या नहीं करना, सबका सीमांकन करवाते

 

हिन्दू धर्म की बात चली तो, बोले पण्डित से पादरी काजी

हम करते हैं इसकी व्याख्या, तुम करते जाओ हाँजी नाजी।

 

बुतपरस्ती ही करते तुम सब, उसके बिना चले न काम

रामायण का वाचन करते, माला जपते राम और श्याम

पण्डित बोले नाजी नाजी, वेदों में नहीं सगुण साकार

निर्गुण कबीर रैदास जायसी, महिमा गाते ब्रह्म निराकार

 

घण्टा और घड़ियाल बजाते, भजन कीर्तन से करते हल्ला

बिना शोर भगवान मिलें न, उठकर बोल पड़ा एक मुल्ला

सहजयोग में गहन ध्यान हो, परम शांति की चिरनिद्रा निलय  

अँतर्मुखी शक्ति प्रज्वलन से होता, कुण्डलिनी का ब्रह्म विलय

 

माँस मछली खाते नहीं, शाकाहारी का बन गया रिवाज

सबसे बड़ा हिन्दू तो वो है, जो न खाये लहसुन व प्याज

बंगाली आसामी नेपाली, खाते माँसाहार बारहों मास

दुर्गापूजा नवरात्रि पे भी, बलि से बुझती देवी तास

 

ऐसी चर्चा सुनकर भैया, धर्मगुरुओं का गरम हुआ मिजाज

परिभाषित हम करें तो कैसे, कोई तो युक्ति बताओ आज

धीरज रख के ध्यान धरो अब, पण्डित का निकला उद्गार

हिन्दुत्व एक अनोखा यंत्र है, जिसके तारों से हो यलगार

 

सनातन है नाम इसका, आदि है न अंत

बाँध सके न परिभाषा, महिमा इसकी अनंत

ऊपर विशाल नीला व्योम, कहाँ है उसका अंत

कालचक्र कब हुआ आरंभ, कब होगा घूमना बंद  

 

तो इसको रचने वाला ईश्वर, कैसे बंधेगा तुमसे दैया

बालयोगी श्याम को भी, न बाँध सकी थी उसकी मैया

निर्गुण सगुण हिंसक अहिंसक, या हो मांसा शाकाहारी

नास्तिक भी हिन्दू कहलाकर, हो जाते हैं  बलिहारी

 

सब पंथों के ग्रंथों की बातें, पत्थर की होय लकीर

नहीं बदलते इंच मात्र, जो कह गये उनके फकीर

समाज सुधार का अल्प प्रयास, मार बना देगा हलवा

विश्व के कितने कोनों से, निकल पड़ेगा ढेरों फतवा   

 

मानव समाज के हर सुधार का, सनातन करता स्वागत

नानक महावीर गौतम कबीर, न जाने कितने आवत  

बहुविवाह बालविवाह विधवाविवाहनिषेध, सती दहेज उत्पीड़न  

संसद में कानून बना, इन कुरीतियों का कर डाला उन्मूलन

 

जहाँ विश्व के अन्य धर्मों में, पृथ्वी पर ईश्वर दूत ही आये

जीसस गॉड का तो मोहम्मद अल्ला का, पैगाम यहाँ सुनाये

वहीं सनातन आस्था में देखो, ईश्वर ने स्वयं लिया अवतार  

राम श्याम वामन वराह नरसिंह बनकर, आते गए दस बार 

 

भगवद्गीता श्लोकों के ज्ञान का, विज्ञान भी मानता सानी

क्योंकि यह साक्षात ईश्वर के मुख से, है निकली हुई वाणी

वसुन्धरा की सनातन संस्कृति, विश्व-गुरुओं का केंद्र बिन्दू है

सनातनियों क्यों इतना सकुचाते ही, गर्व से कहो हम हिन्दू हैं  

Jul 17, 2023

नया माल

एक लखनवी नवाब
पीते शराब
खाते कबाब
शौकीने शबाब

हुस्न को परखते थे
जुल्फों में उलझते थे
किस रक्कासा की हैं जुल्फें
सूँघ के ही बकरते थे

ये है महरुन्निसा की
ऊपर वाली चमेलीबाई
दाहिने है रुखसाना की
तो बाएं पड़ी है जोहराबाई

बीरबल का पोता लखनऊ आया
मसखरी करने का शौक चर्राया
गधी के बाल थैली में भरवाया
नवाब के सामने पेश करवाया

सूँघ के नवाब होते रहे हलकान
बढ़ती गई खीझ हुये परेशान
फिर जोर से चिल्लाये, नवाब ने अता फरमाया है
कोचवान इरफान, बग्घी निकालो, लखनऊ में नया माल आया है

Jun 17, 2023

लखनऊ मीट

चाह नहीं पुलिस बन रिक्शेवालों पे डंडा बरसाऊँ
चाह नहीं वकील बन झूठ का पुलिन्दा फैलाऊँ
चाह नहीं प्रोफ़ेसर बन क्लासरूम में ही रह जाऊं
चाह नहीं डाक्टर बन आधी रात को दौड़ा जाऊं
चाह नहीं आईएएस बन नेताओं से गाली खाऊँ 
मुझे बना देना तुम भगवन, दे देना एक ऐसा मन्त्र
मानवता के लिए समर्पित, बनाता जाऊँ नूतन  यंत्र  
 
आईआईटी में दिया नहीं आया, रुड़की में दिया नहीं आया.
इंजिनियर बनना नहीं भाग्य में, चराओ भैंस धरमेंदर भाया
तभी मोहल्ले का डाकिया आके, बत्तीसी निकाल हाथ लहराया  
बस्ते से निकाल, मालविया में सेलेक्शन का लिफाफा दिखलाया
 
हनुमानजी को लड्डू चढ़ाया, कई बार था माथा रगडा
साहूकार नरम पड़ गया, वसूली में तोड़ गया था जबड़ा
पत्नी अब सुन्दर मिलेगी, दोस्तों में भारी हो गया पलड़ा
अड़ोसी-पड़ोसी जलने लगे, साले को दहेज़ भी मिलेगा तगड़ा
 
भाई साहब, वार्डन से मिलने का कुछ तो बताओ जतन 
उसने कहा, फ्रेशर हो साले, पहले देखो अपना थर्ड बटन
मलावियन सॉंग व ऐन्थेम से, करो इस कालेज को नमन
फर्शी सलाम ठोंकते हुए, फिर यहाँ से करो वार्डन को गमन.
 
मैंने कहा कुछ समझ आया नहीं, रक्षा करो हे माँ दुर्गा
उसने कहा सब समझ आ जाएगा, पहले तू बन जा मुर्गा.
 
कालेज में एडमिशन लिया, कुछ मित्र भी बन गए
खूँखार सीनियरों को देख मगर, हम बहुत ही डर गए
शाम को भाग के सारे मित्र, शहर में गोलघर पहुँच गए
पार्क सिनेमा हाल ट्रेन का डब्बा, कहीं पे भी लटक गए.
 
रात भर सोने न दें, सुबह भी जगा दें तड़के
ज़रा भी ना नुकर किया, तो दे तमाचा जडके
घर वालों से कही, तो वो अलग से भड़के
मन तुम्हारा लगता नहीं, पढाई करो जमके
 
रैगिंग का अंत होता नहीं, बीत गए दो मॉस
इससे तो बेहतर था, मैं गाँव में छीलता घास
वर्ष युग के सामान लगे, हर पल हर एक सांस
हे बजरंगी अब ख़तम करो,  ये अंतहीन वनवास
 
तीन महीने बाद एकदम, छप्पर फाड़ वो ख़ुशी आई 
फ्रेशर पार्टी की नोटिस जब, हॉस्टल में पडी दिखाई
पंकज का गीत व शर्मा का नृत्य, अदा सबको भाई
सीनियर जूनियर सब हुए समान, ख़त्म हुई बीच की खाई  
 
तीनों बटन अब खोल के चलते, हम भी बन गए पूरे दादा
पढाई लिखाई कभी न होती, बस हल्ला करते रहते ज्यादा
हाकी राड और कट्टा रखते, सबसे लड़ने पे आमादा
परीक्षा जब सर पे आ गयी, तो दिखाई देने लगे परदादा
 
तिवारी से माँग सिलेबस लाया, पढूँ कहाँ कौन से छोर
कमरे से बाहर विंग में तभी, होने लगा यकायक शोर
परीक्षा टालो पीछे करो, जयदीप लगाये नारा जोर
सारे बकैत सहमत हुए, चला हुजूम प्रिंसिपल की ओर
 
आखिरी पेपर देने के बाद, ट्रेनों में पूरा कब्जा जमा बैठे
वानरी सेना ये नोच खाती, यदि डब्बे में कोई ज़रा भी ऐंठे
रेलवे कंसेसन पर डीन के ठप्पे, हास्टल में ही लग जाते थे।
रेल यात्रा में सारे मालवियन, केवल हरिजन कहलाते थे।
 
जैसे पतंगा हो सम्मोहित, देख जलता हुआ दिया।
विरहिणी के लिए जैसे उसका, बिछड़ा हुआ पिया।
किसी युद्धबंदी ने जैसे, अपना वतन पा लिया।
वैसे हम भूतपूर्व-छात्रों के लिए, होता था मालविया।

मित्रों के संग घूम टहल , गन्ना अमरुद उड़ाते थे।
गोलघर में तितलियों के पीछे, लम्बी रेस लगाते थे।
कुछ को खोराबार के जंगल ही, ज्यादा रास आते थे।
ढाबे में इतना खा लिये, बाबूलाल पैरों में गिर जाते थे।
निर्दयी वार्डेन सर्द रातों में, हमारा हीटर उठा ले जाते थे।
साथी दोस्त के लिए झगडा कर, अपना सर भी फुड़वाते थे।
पास होने पर उस दोस्त से दुबारा, शायद ही मिल पाते थे।
परीक्षा टलवाने के लिए हम भी, प्रिंसिपल तक को हड़काते थे।
 
क्या क्या सुनाऊँ, तीन सौ एकड़ मालविया से कितना गहरा नाता है
खेत से ताजा गन्ना चूसे कोई, किसी को बाग़ का अमरूद ही भाता है
कोई आम का टिकोरा तोड़े, कोई ऊँचे पेड़ वाली ताड़ी पीने जाता है
कोई टीचर्स कालोनी में निहारे, तो कोई जीनत अमान की रोटी खाता है
कोई यादव के समोसे पे लट्टू, तो कोई मुंशी-ढाबे पे जीमने जाता  है
 
छोड़ दूँ 72 हूरतोड़ भागूं इंद्रलोक के ताले।
मिल जाय बिछड़े यार संग, जाम के चंद प्याले।
कह डीके कविराय, मरने के बाद जब भी ऊपर जाऊँगा,
अंतिम इच्छा के रूप में, वहाँ भी एक मालविया मागूँगा.

May 27, 2023

वो बचपन


 
होश आया तो अम्मा के आँचल का नहीं किनारा था
परिवार-बोझ में व्यस्त पिता को भी कहाँ निहारा था
मातृ-छाया विहीन, समाज की ज्वाला तले संघर्षरत
जीवन पथ पर दो मासूम बहनों का मिला सहारा था
 
एक हाथ में पुस्तक, दूजे से सुलगाती गीली लकड़ियाँ
चूल्हा फूंकते राखरंजित नेत्र, रण-बाँकुरी दो लड़कियाँ
चाय नाश्ता सबको देकर, मध्यान्ह पकवान तैयार किया
विद्यालय से आकर रात्रिभोजन, क्या क्या बतलायें मियाँ
 
छोटे नगर के कन्या विद्यालय में न थी लेबोरेट्री की थाती   
वरना गणित विज्ञान पढ़ वो डाक्टर इंजीनियर बन जाती
सामाजिक बंधनों की तीव्र ज्वाला में जलने वाली वो बाती 
अग्निशिखरों पे आरूढ़ हो कुंदन सी और निखरती जाती 
 
हम तीनों अक्सर लड़ते थे, बात बात पर झगड़ते थे
दूसरे ही पल फिर भूल बिसर के, एक दूजे पे मरते थे
आज एक के पीछे दो माँ-बाप, चम्मच लिए फिरते हैं,
कह डीके कविराय, भला कैसे हम वो जीवन जीते थे

May 15, 2023

कलयुगी असुर

 
क्षीर सागर में नाग-शैया पे लेटे हुये नारायण की कमर में अकड़न हो चली थी। लक्ष्मी जी ने बहुतेरे प्रयास किये पैर दबा दबा के,  कथा सुना सुना के, किन्तु बोरियत दूर न हो पा रही थी।
 
अंततः लक्ष्मी जी ने कहा, “प्रभु आप नारद मुनि का आह्वान कीजिये। उनके चटपटे मसालेदार वर्णन ही आपका जायका सही करेंगे।
 
विष्णु जी ने नारद मुनि का आकस्मिक आह्वान किया। वो क्षण भर में प्रकट हो गए।
 
नारायण नारायण। प्रणाम स्वीकार हो प्रभु”।
 
कहिये नारद मुनि, मृत्युलोक के क्या समाचार हैं?”
 
समाचार अच्छे नहीं हैं प्रभु”।
क्यों क्या हुआ?”
 
बड़ी विकट स्थिति हो गई है। सब कुछ उलट पलट हो गया। शीतकाल में गर्मी का प्रकोप हो गया है। ग्रीष्म ऋतु में लू का प्रवाह बंद हो गया। चैत्र मास के पश्चात सीधे सावन भादों की झड़ी लगी हुई है। किसानों की फसल पकने से पहले ही सड़ जा रही”।
 
ऐसा क्यों हो रहा? इंद्रदेव ने हमारे बनाये नियमों का उल्लंघन क्यों किया?”
 
अब ये तो वही जाने प्रभुवर। आपकी पकड़ ढीली हो रही है प्रशासन पर। देवगण अपने मन के मालिक होते जा रहे”, नारद मुनि ने अपने गुणों के अनुरूप आग में घी डाला।
 
नारायण दहाड़े, “गरुड, तुम शीघ्र जाओ और देवराज इन्द्र को प्रस्तुत करो”।
 
जो आज्ञा नाथ”, कहकर गरुड वायुवेग से प्रस्थान कर चले। कुछ ही क्षणों में इन्द्र को अपने साथ बिठा लाए। इन्द्र का वाहन हाथी भी गरुड के पंजे में दबा था। यदि इन्द्र अपने वाहन पे आते तो कई दिन लग जाते।
 
उन्हें देखते ही नारायण उबल पड़े, “देवराज, मेरे द्वारा स्थापित नियमों का उल्लंघन क्यों हो रहा है? वैशाख व जेठ मास में वर्षा क्यों हो रही है?”
 
क्षमा प्रभु, किन्तु इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। आर्यावर्त के लिये बना सॉफ्टवेयर ‘मौसम’ करप्ट हो गया है। उसकी सुरक्षा में तैनात अग्निकवच (फायर वाल) को दानवों ने विषाणुआस्त्र से भेद दिया है। इसलिए गर्मी में वर्षा और शीत ऋतु में ताप-वृद्धि हो जाती है”।
 
अग्नि-कवच किस देव की उपासना से प्राप्त किया था इन्द्र?”
 
इसे नारायण ने दिया था प्रभु”।
 
क्या अनर्गल प्रलाप कर रहे हो इन्द्र। मेरा दिया अस्त्र कभी कोई भेद नहीं सकता। कब दिया यह अस्त्र मैंने तुम्हें?”
 
क्षमा प्रभु क्षमा, मैं आपकी बात नहीं कर रहा हूँ। मैं आर्यावर्त में बसे हुये नारायण की बात कर रहा हूँ। इनकी संस्था इन्फोसिस ने यह अग्निकवच डिजाइन किया था”।
 
किसी मानव से क्यों ले लिया युद्ध का अस्त्र? यह भला दानवों के विरुद्ध कहाँ टिक पाएगा?”
 
अब नारद मुनि आगे आये, “प्रभु, आज का दानव अति चालाक है। इसके आगे देव अस्त्र निष्प्रभावी हो जाते हैं। इससे आईटी दिग्गज ही टक्कर ले सकते हैं”।
 
कौन है यह दानव? कहाँ है निवास इसका?” 
 
त्रेता युग में दक्षिण दिशा लंका से राक्षस राज रावण ने कहर बरपाया था। द्वापर में आर्यावर्त के केंद्र हस्तिनापुर व मथुरा में दुर्योधन व कंस का तांडव हुआ। यह राक्षस प्रवृत्ति उत्तरोत्तर उत्तर दिशा की ओर ही उन्मुख हो रही। अब कलयुग में उत्तर दिशा में स्थित ‘चाइनीज ड्रैगन’ नामक दैत्य की उत्पत्ति हुई है जिसने समस्त भूमंडल में हाहाकार मचा रखा है”।
 
नारायणमूर्ति कितने कारगर होंगे इस ड्रैगन के विरुद्ध?”
 
नारद मुनि ने बीच में एंट्री मारी, “प्रयास वो बहुत कर रहे प्रभु। उन्होंने अपनी कन्या अक्षता का विवाह आंग्ल-देश के एक ऋषि से किया था। कन्या के प्रबल भाग्य से आज वह ऋषि आंग्ल देश का नरेश बन गया है। कहा तो ये भी जाता है कि उस ऋषि को नरेश बनाने में नारायण ने अपने धन बल का भरपूर प्रयोग किया”।
 
नारायण नाम की महिमा ही अपरंपार है,” इंद्रदेव ने मस्का मारा।
 
विष्णु ने टोका, “किन्तु आंग्ल देश कितना प्रभावी होगा? क्या यह ड्रैगन-दैत्य के विरुद्ध विजय दिला सकता है?”
 
प्रभु आज मृत्युलोक में आंग्ल-भाषा ही सबसे प्रबल हैं। आंग्ल-वंशियों ने इंग्लैंड अमेरिका कनाडा आस्ट्रेलिया जैसे प्रबल राष्ट्रों पे अधिपत्य जमा रखा है। आंग्लदेश इन आंग्ल-वंशियों का उद्गम स्थल है। और इनके ऊपर बैठा  नरेश हमारे आर्यावर्त का आर्यवंशी आर्यपुत्र ऋषि सुनक है। इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से आर्यवंशियों का प्रभुत्व समस्त विश्व पर हो गया”।
 
नारायण संतुष्ट हुये, “हमारे आर्यावर्त का नरेश कौन है, और वो क्या कर रहा है? क्या वो सुषुप्तावस्था में चला गया है?” 
 
नारद जी ने पुनः अपना ज्ञान उड़ेला, “तुलसीदास कालिदास व गौतम बुद्ध की ही तरह अपनी पत्नी को त्याग देने वाला नरेंद्र है प्रभु।“
 
और मेरे अवधपुरी मथुरा वृंदावन गोकुल में कौन अधिपति है?”
 
एक योगी है नारायण। इसने तो विवाह किया ही नहीं। बालकाल से सन्यासी है”।
 
नारायण ने पहलू बदला, ”योगी सन्यासी गुरु लोग समाज के अधिष्ठाता बने हैं। फिर तो आर्यावर्त विश्व गुरु बन गया होगा?”
 
इस दिशा में प्रयास प्रबल वेग से चल रहा है। 21 जून को समस्त विश्व में योग दिवस मनाया जाता है। बाधा है तो बस यह ड्रैगन ही। इसके साथ सीमाओं पे हमारी सेना संघर्षरत है। यह हमारे राजकोष (बैंकिंग सिस्टम) को भी विषाणुअस्त्र से अपंग बनाने की कुचेष्टा करता रहता है।“
 
ठीक है। नरेंद्र और योगी से कहो ड्रैगन दैत्य का अंत शीघ्र करें। कलयुग में हम अवतार नहीं लेते। यदि दैत्य प्रबल हो गया तो पृथ्वी का विनाश हो सकता है। हमारे आराध्य महादेव ताक लगाए बैठे हैं कलयुग के पश्चात प्रलय लाने हेतु। कहीं ड्रैगन दैत्य इस प्रलय का माध्यम न बन जाय। आसुरी शक्तियों का विनाश या नियंत्रण ही कलयुग की अवधि दीर्घ करेगा, और मानव को प्रलय से दूर रखेगा”। 
 
नारद ने अतिरिक्त सूचना दी, “नारायण, आर्यावर्त में भी कुछ लघु राक्षस विचर रहे हैं”।
 
तो क्या मोदी-योगी द्वय इनका उन्मूलन नहीं कर रहे?”
 
कर तो रहे हैं प्रभु, किन्तु दोनों का मार्ग भिन्न है”।
 
वो कैसे?”
 
मोदी इन राक्षसों के प्रति कोमल मार्ग अपनाते हैं। कड़ी कार्यवाई नहीं करते। यदा कदा झुक भी जाते हैं। इंद्रप्रस्थ के शाहीन बाग में दानव-वधुओं ने राजमार्ग 6 मास तक बाधित किये रखा। तदपि मोदी ने कोई कदम नहीं उठाया प्रजा को इस कष्ट से मुक्ति दिलाने हेतु। किसान उपज के दलालों ने तो राजकिले पर अपना ध्वज भी लहरा दिया था। राजधानी को घेर के रखा। राजा ने किसानों की भलाई हेतु अपने द्वारा बनाया कृषि-कानून, जो समस्त सभासदों के द्वारा ध्वनिमत से पारित हुआ था, को तिलांजलि दे किसान-दलालों को उश्रृंखल बना दिया। प्रजा में किसान वैसे भी त्रस्त हैं इंद्रदेव के मौसम की उल्टा पलटी से”।
 
इसमें मेरी कोई गलती नहीं है मुनिवर। आप मीडिया लोगों को बात का बतंगड़ बनाने की आदत है”, इन्द्र ने विरोध व्यक्त किया।
 
विष्णु ने बीच बचाव किया, “आप लोग आपसी मतभेद छोड़ पहले बताइए यह मीडिया क्या होता है”?
 
मीडिया नारद जी की ही प्रजाति के लोग हैं। आज ये लोग जनता को अपनी मनमर्जी अनुसार सही गलत समाचार दे राष्ट्र का तख्तापलट भी करने की ताकत रखते हैं। जिसने पैसा दिया उसके अनुसार समाचार छापेंगे। उसका गुणगान करेंगे”, इंद्रदेव ने अपनी जानकारी रखी।
 
यह तो बड़ा ही निकृष्ट कार्य है। प्रशासन उनके इस निकृष्ट नैतिक आचरण के लिए दंडित नहीं करता?”
 
नैतिक आचरण की तो बात ही छोड़ दीजिये प्रभु। प्रशासन के लोग जिन्हें जनता चुनती है, अपने लिए जीवन भर पेंशन यानि राजकीय कोष से वेतन प्राप्त करते हैं। यह पेंशन समस्त राजकर्मियों के लिये प्रतिबंधित कर दी गई है, यहाँ तक कि राजसेना के सैनिकों के लिए भी। मात्र 4 वर्षों के लिए अग्निवीर लिए जाते हैं, जिन्हे सेवानिवृत्ति पश्चात कुछ नहीं मिलता। और ये शासन के नेता यदि 3 बार चुनाव जीते तो 3 पेंशन मिलेगी"।
 
शिव शिव। कितना ह्रास हो गया है नैतिक मूल्यों का। अब यह बताइये योगी का शासन कैसा है हमारी अवधपुरी में?”
 
बेहतर है प्रभु। आपके अयोध्या में विशाल राम मंदिर का निर्माण हो रहा। रामलला की मूर्ति निर्माण हेतु सीता माता के नैहर में प्रवाहित काली-गण्डकी सलिला से सालिग्राम प्रस्तर आयातित किये गये हैं”।
 
नारायण की मुखमुद्रा पे संतुष्टि के भाव प्रकट हुये, “राजा तो रामभक्त लगता है। उसका कल्याण हो। उसका शासन कैसा है?”
 
अति कठोर है प्रभु। शाहीन बाग की कुछ दैत्य-कन्याओं ने उनकी राजधानी लखनपुर में हाहाकार मचाना चाहा। योगी ने उन सबको मार मार भगा दिया। कई दशकों से प्रजा का रक्तपिपासु मुख्ताराक्षस पंजप्रदेश के सरक्षण में विलासपूर्ण जीवन जी रहा था। योगी उसे अपने प्रदेश में उठवा लाये। कठोर कारावास में रखा है”, नारद ने सूचित किया।
 
यह कार्यवाई उचित तो है, किन्तु कठोर नहीं है। राक्षसों को कारागार में डाल जीवित नहीं रखना चाहिये। वो न जाने कौन सा मायावी रूप धर निकल भागें। कारागार तो सज्जन पुरुषों के लिए होता है। सर्वदा दैत्यों ने सत्पुरुषों को कारागार में रखा, देवों ने नहीं। कंस ने अपने पिता अग्रसेन को, भगिनी देवकी व बहनोई सखा वासुदेव को कैद में रखा। रावण ने भी समस्त देवताओं व संतों को कैद किया। अग्नि वरुण यम तो उनके यहाँ नित्य उपस्थिति देने जाते थे। मुचलके पे छूटे थे। लेकिन हम ईश्वर लोग अत्याचारी पापी राक्षसों का वध कर देते हैं। उन्हें कारगर में पालते नहीं”।
 
आपके ही मार्ग पे चल रहे हैं योगी। प्रयाग नगरी में अतिकासुर नामक राक्षस कई वर्षों से आतंक मचाये हुये था। संतों को कष्ट देना, उन्हें सरेआम बीच चौराहे पे मरवा देना, प्रजा की संपत्ति पे अपना ध्वज टाँग मनमाने सस्ते दाम पे जबरन कब्जा कर लेना, शत्रु राष्ट्र पाकिस्तान से अस्त्र-शस्त्र ले उसके कहे अनुसार आर्यावर्त में दंगा कराना जैसे घृणित कार्य में लिप्त था। न्यायाधीश भी उसके समक्ष भय से उठ खड़े होते थे। हिम्मत नहीं उसके विरुद्ध सजा सुनाने की”।
 
विष्णु ने बेचैनी से करवट बदला, “किन्तु योगी ने क्या किया? यह मेरा मार्ग नहीं है”।
 
मैं उसी बात पे आ रहा था प्रभु। योगी ने अतिकासुर, उसके भ्राता, उसके पुत्र व अनेक अन्य असुरों को मरवा दिया। सरे आम मीडिया के समक्ष उनका वध हुआ जिससे केजरीबवाल इस वध का प्रमाण न माँग बैठें”।
 
अब यह केजरीबवाल कौन है?”
 
यह उसी धोबी का पुनर्जन्मा है प्रभु जिसके कहने पर आपने माता सीता को अयोध्या से निष्कासित कर दिया था। जो माता सीता से उनकी पवित्रता का प्रमाण माँग रहा था। अग्निपरीक्षा के प्रमाण से संतुष्ट नहीं था।  इस जन्म में यह इंद्रप्रस्थ नरेश है। आर्यावर्त के वीर सैनिक शत्रु देश की सीमा में प्रविष्ट हुये गुप्तचर वेश में।  बहुतेरे पापी दानवों का वध कर, सुरक्षित वापसी की। इसे सर्जिकल स्ट्राइक कहा जाता है। उनकी वापसी पर केजरीबवाल उन सैनिकों से वध का प्रमाण माँग रहा था। सेनापति के कथन से भी संतुष्ट न हुआ।  बहुत घुटा हुआ नेता है। जितना जमीन के ऊपर है उसका नब्बे गुना जमीन के नीचे। ईमानदारी का ढोल पीटता सत्तासीन हुआ। कहता था नित्य मेट्रो रेल से राज दरबार में जाऊंगा। कभी लालबत्ती गाड़ी नहीं लूँगा।  वीआईपी संस्कृति से दूर रहूँगा। अपने साधारण घर में रहूँगा। राजकीय आवास नहीं लूँगा। बच्चों की शपथ ली थी, कभी राजनीति में नहीं जाऊँगा। जो कहा, उसका उलट ही किया। उसके बहुत से दरबारी व सहयोगी मदिरा व सोमरस घोटाले में बंदी हैं। इसके विरुद्ध भी अनेक अपराध दर्ज हैं”, नारद मुनि ने एक साँस में सारा कथन कह डाला।