बचपन से सुनते आए थे, असली भारत देखना है तो गाँवों में जाइये। देश की 90% जनसंख्या वहीं रहती है। अब चूंकि हम स्वयं ग्रामीण परिवेश से ही आते हैं, शिक्षा व बेहतर जीवन यापन हेतु भले ही नगरों/ महानगरों में रहते रहे हों, भीतर हृदय की गहराइयों में सर्वदा कहीं कसक रही कि सेवानिवृत्ति पश्चात शेष जीवन अपने ग्राम में ही बसर करेंगे। ग्राम में यदि न भी रहे तो निकट वाले किसी नगर में डेरा डालेंगे।
इस बीच लंबे अंतराल के लिए विदेशों में तैनाती हो गई। वर्ष में दो एक बार ही स्वदेश आना हो पाता था, वो भी अल्प समय के लिए। भागते हुये कभी कभार ही गाँव/गृहनगर देख पाते थे उड़ती निगाहों से। निकट ठीक से देख न पाया। इस वर्ष जब स्वदेश वापसी हुई, मुख्यालय स्थानांतरण पश्चात, तभी से मौके की तलाश में था।
दस दिनों के भीतर तीन विवाह की तिथियाँ आई। तीनों करीबी रिश्तेदारों के। विवाह-स्थल भी मेरे परम प्रिय, वही जो मेरे हृदय के भीतर की असीम गहराइयों में समाए थे, गोरखपुर, वाराणसी व प्रयागराज। दस दिन का अवकाश मिलना आसान तो था नहीं, पर किसी तरह कार्यालय में लड़ झगड़ अनुमोदन करा ही लिया। तीनों नगरों के अनुभव कमोवेश एक जैसे ही रहे। दरअसल ये तीनों नगर नहीं महानगर हैं यूपी के।
प्रातःकाल ब्राम्ह-मुहूर्त में शय्या त्याग देना मेरी आदत रही है विगत कई दशकों से। तत्पश्चात प्रातः भ्रमण और योग प्राणायाम। कुल मिलाकर सब कुछ एक घंटा। वहाँ पहुँचते ही सुबह उठ चल पड़े भ्रमण को, लेकिन बाहर मार्ग में सड़क पर धूल बहुत थी। यहाँ नोएडा में सड़क के बगल ईंट का फुटपाथ, फिर गार्डन जिसमें हरी घास व वृक्ष लगे होते हैं। धूल के लिये कहीं कोई जगह नहीं, सिवाय तब जब राजस्थान से आंधी आ जाए। लेकिन वहाँ ऐसा न था। नाक पर रुमाल या मास्क रखने के पश्चात भी राहत न मिलती थी। जूते अलग से धूसरित हो रहे।
बड़ी खोज बीन की, मगर नोएडा जैसे पार्क न मिले कहीं। मुख्य चौड़े मार्ग पर वाहनों की अधिकता से भीषण प्रदूषण, तो अंदर सकरी गलियों में सड़क के बाद सीधे मकानों की सरहद। वृक्ष लगाने के लिए स्थान की तो बात ही क्या करनी, यदि एक वाहन खड़ा करके कोई अपना समान उतारने लगे तो पीछे अन्य वाहनों की कतार लग जाय। पार्क व पार्किंग दोनों का आभाव।
सोचा फ्लैट देखा जाय। वहाँ अवश्य माहौल बेहतर होगा। फ्लैट वर्टिकल स्पेस लेते हैं, इसलिये हॉरिजॉन्टल स्पेस खाली मिल जाता है। अवश्य काफी खुला मैदान होगा पार्क इत्यादि के लिये। किन्तु वहाँ अंदर कोई पार्क, स्विमिंग पूल, वॉकिंग ट्रैक दृष्टिगोचर न हुआ। फ्लैट भी पास पास एक दूसरे से हाथ मिलाते हुये। टावरों के बीच की आवश्यक दूरी नजर न आई। नोएडा फ्लैट की बालकनी में खड़े हो जाने पर दूर तक विहंगम दृश्य दिखता है, लेकिन वहाँ दिखे बगल के फ्लैट की रसोई अथवा शयन-कक्ष। एफ ए आर के मानक का कोई न्यूनतम स्तर नहीं है वहाँ।
दाम सुना तो पैरों तले जमीन खिसक गई। नोएडा का दुगुना या तिगुना। जमीनो पर बने मकान तो उससे भी डबल। जमीन की ही कीमत इतनी अधिक कि उतने में नोएडा के दो फ्लैट आ जाय। धन्यवाद दीजिये सुश्री माया बहन को जिनकी वजह से नोएडा में फ्लैटों की धकापेल हो गई। इतने बन गये कि लेने वाले ही बाजार से गायब हो गये। इतने कम कीमत पर इतनी सुविधाओं के साथ, जहाँ प्रत्येक सेक्टर में धुँवाधार हरे भरे पार्क भरे पड़े हों, छोड़ दोगुनी कीमत पर कोई भला क्यों जाए? नीचे एक चित्र में आप देख सकते हैं यहीं बगल गाजियाबाद में 5 लाख की फेंकू कीमत पर फ्लैट उपलब्ध है। इतने में तो बनारस में आपको दो गज जमीन भी नसीब न होगी।
हर वस्तु की होम डेलीवेरी हो जाती है। वाहन की बैटरी कमजोर हो चली थी। स्टार्ट न हो रही थी। अनलाइन ढूँढा। चार हजार में घर पे आकर लगा गया। बाद में पता किया दुकान पर वही बैटरी पाँच हजार से भी अधिक कीमत पर थी। महानगर दिल्ली जैसी ये सुविधायें अन्य नगरों में फिलहाल अभी उपलब्ध नहीं हैं। वाराणसी में घंटों इंतजार के पश्चात भी एक टैक्सी न मिली ओला/ उबर से और यहाँ रेल लगी पड़ी है। टैक्सी के अलावा दिल्ली मेट्रो है। नोएडा मेट्रो हैं। डीटीसी की बसें हैं। यातायात के लिए तो कोई झंझट ही नहीं।
दिल्ली गुड़गांव भी नोएडा जितना खुला-खुला नहीं है। अब तो एशिया का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय विमानस्थल, फिल्म सिटी, उद्योग, सैमसंग मोबाईल फैक्ट्री, माल सभी कुछ यहीं है। दिल्ली में माल भी नहीं क्योंकि खाली स्थान नहीं बचे। देश-विदेश कहीं भी जाना हो तो सभी साधन उपलब्ध। देश का कोई प्रांत नहीं जहाँ के लिए यहाँ से ट्रेन व वायुयान न मिलते हों। विश्व में कहीं जाना हो, भारत के हर कोने से लोग यहीं दिल्ली आते हैं। हर स्थान से सीधा जुड़ाव। यदि आप को समय काटना हो तो निकल जाइये उद्योग मेला, पुस्तक मेला, दिल्ली हाट, रंगमंच, नाट्यशाला। ऐतिहासिक स्थल पे बैठ जाइए। दरियागंज हो आइए रविवार यदि सेकंड हैंड सस्ती पुस्तकें चाहिये। सेवानिवृत्ति बाद भी काम करना हो तो यहाँ ही नौकरी मिलेगी। नहीं करना हो तो देशाटन के लिए हर साधन। बस एक समस्या है नोएडा में। अक्तूबर-नवंबर में पराली प्रदूषण का प्रकोप। लेकिन बारहों महीने झेलने से बेहतर है एक महीना झेला जाए। वैसे सरकार प्रयत्नशील है, भविष्य में कोई हल निकलेगा ही।
अब हम कहीं नहीं जाने वाले। जायेंगे भी तो बस अपने ग्राम, जहाँ धूल प्रदूषण नहीं। आते जाते रहेंगे कुछ दिन के लिये। ट्रेन-वायुयान मार्ग से सीधा जुड़ाव है ही। गरीब रथ यहीं बगल आनंद विहार से मिल जाएगी, जो सीधे प्रतापगढ़ उतारेगी। नीचे चित्र में दिखाये सारे पार्क व मनोहारी उद्यान मेरे निवास से मात्र 25 मीटर की परिधि में हैं। प्रथम चित्र गोरखपुर का जबकि अन्य सभी नोएडा के हैं।
काम दाम में इतनी अधिक सुविधायें,
भला कोई क्यों नोएडा छोड़ के जाये।
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