Dec 20, 2021

बुजुर्ग-व्यथा

सुदूर ग्रामीण आँचल मे जन्मे जटा का जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा था। इनका पूरा नाम था जटाशंकर नारायण चतुर्वेदी। अब जैसा कि नाम से ही विदित है, इनके परिवार के हर सदस्य को चारो वेदों का ज्ञान होना चाहिये। समाय बदला, काल और युग बदल गया। न संस्कृत पढ़ने वाले रहे न ही वेद पुराण कंठस्थ करने वाले। सो जटाशंकर को भी उसके पिता ने हिन्दी अँग्रेजी वाले शिक्षालय मे ही प्रवेश दिलाया।

ग्राम से नगर तत्पश्चात महानगर तक जटा ने जीवन के कई थपेड़े खाये। घाट घाट का पानी पिया। कहीं जल मीठा मिला कहीं कड़वा और दूषित। किन्तु हर जल-पान ने उन्हें जीवन के कडवे मीठे अप्रतिम अनुभव प्रदान किये। इन सभी अनुभवों से सीख लेता, उनकी गठरी बनाता जटा जीवन की डगर पे आगे बढ़ता गया। उसका यही मानना था, एक बार की गई गलती शिक्षा देती है, अनुभव देती है। किन्तु उस गलती को दोहराने वाला मूर्ख है। क्या ही अच्छा हो यदि हर मनुष्य गलतियों का अनुभव साझा करता जाये हर किसी से, जिससे अन्य व्यक्तियों को इसका लाभ मिले।
सो उसने अपना पेशा भी उसी के अनुरूप बना लिया। एक कंसल्टेंसी कंपनी मे उच्च पद प्राप्त कर अन्य कंपनियों को देने लगा परामर्श। उसके परामर्श देश-विदेश तक विख्यात हो चले। विदेशों मे भी तैनाती हुई कई वर्ष। अपने पेशे मे इतना विलीन हो चला जटा कि घर परिवार की सुध बुध भी न रही। फिर आ गया जीवन का पतझड़। व्यस्त कॉर्पोरेट जिंदगी से इतर अपने गाँव देश व परिवार से जुडने की आकांक्षा लिये जटा अंततः आ पहुँचा वापस स्वदेश। अब उसकी आकांक्षा थी अपने बच्चों के साथ अपने अनुभव साझा करने की। किन्तु घर का माहौल देख व्यथित हुआ। बच्चे सुबह देर तक सोये पड़े थे।
जटा, ”पुत्री, सुखी व स्वस्थ जीवन व्यतीत करना है तो सुबह सवेरे उठा करो”।
पुत्री, ”क्यों? देर से उठने मे कौन सी समस्या आ जायगी पिताश्री?”
जटा, ”हमे अपनी बॉडी क्लॉक को सन क्लॉक से मैच करके रखना चाहिये। सूर्य के कारण ही समग्र सौरमण्डल ऊर्जावान है। भारत ही नहीं अंग्रेजों ने भी कहा है, early to bed and early to rise, makes a man healthy wealthy and wise. इसलिये सूर्य के अस्त होने के कुछ समय पश्चात निद्रासीन व सूर्योदय से पूर्व शय्या त्याग कर देना चाहिए”।
पुत्री, ”यदि ऐसा है तो अति-उत्तरी गोलार्ध के देशवासी जैसे रूस, इंग्लंड, कनाडा इत्यादि को सर्दियों मे मात्र तीन-चार घंटे ही सोना चाइए। क्योंकि रात दस बजे सूर्यास्त होता है और दो बजे सूर्योदय। ध्रुव-वासियों को तो छ महीने सोना ही नहीं चाहिए। एवं गर्मियों मे लगातार छ महीने सोते ही रहना चाहिये।
ऐसे अकाट्य तर्क कि आशा न थी जटा को। कुछ उत्तर न सूझा। समग्र विश्व को परामर्श देकर पैसा कमाने वाला अपने ही घर मे निरुत्तर हो गया। कुछ दिनो पश्चात पुनः ज्ञान देना आरंभ किया।
जटा,”तुम्हें अब विवाह कर लेना चाहिये”।
पुत्री,”क्यों?”
जटा,”शास्त्रों मे कहा गया है, पचीस वर्ष के बाद गृहस्थ आश्रम आरंभ होता है। विवाह की यही सही उम्र है”।
पुत्री,”पर विवाह करना ही क्यों?”
जटा,”पुत्री, हम माता-पिता कब तक तेरा साथ देंगे। एक दिन चले जाएँगे। तब कौन तेरा साथ देगा?”
पुत्री,”मुझे किसी का साथ चाहिए ही नहीं। विवाहोपरांत बहुत झंझट है। मैं किसी के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती। विवाह नाम ही समझौते का है। न करो समझौता तो विवाद होगा। मुझे अपना जीवन अपने हिसाब से जीना है। उसमें किसी कि दखलंदाजी नहीं चाहिए”।
जटा,”हर किसी को एक साथी चाहिये। यदि तुम रुग्ण हो गई तो कौन देखभाल करेगा? परवीन बाबी अकेले ही अपने घर मे मरी पाई गई, उसके मरने के कई दिन बाद जब दुर्गंध आने लगी”।
पुत्री, “तो क्या हुआ। मरना तो एक दिन है ही। मरने के बाद क्या सोचना किसी को पता चले या न चले। दुर्गंध आए या सुगंध। रुग्ण होने पर एम्ब्युलेन्स फोन पे आ जाती है। मेरे कई मित्र भी हैं जिन्हें बुलाया जा सकता है”।
ऐसा ही वाद-विवाद चलता घंटों। जटा को लगा आज के बच्चे इतने आसान नहीं हैं। कॉर्पोरेट क्लाईंट को समझाना अधिक आसान है, पर आज के बच्चों को नहीं। कई दिनों के प्रयास के पश्चात उन्होने एक अंतिम बाण चलाया। संवेदनशील बाण।
“पुत्री, मैं तेरा पिता हूँ। मेरी बात मान ले। मैं न होता तो तू इस दुनिया मे ही न आती। कृतज्ञ होना चाहिये तुझे”।
“न आती तो क्या हो जाता? जनसंख्या ही कुछ कम रहती”।
“अरे मैंने तुझसे अधिक दुनिया देखी है। मुझे अधिक अनुभव है। क्या गलत और क्या सही, इसका ज्ञान मुझे तेरे से अधिक है। मैं चाहता हूँ तुझे मेरे अनुभव का लाभ मिले”।
“बहुत बहुत धन्यवाद। पर मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है। आप की पीढ़ी आउट डेटेड हो चुकी है”।
जटा शंकर बड़े विक्षिप्त हुये। हा विधाता, जीवन के अंतिम पड़ाव पर इतने सारे अनुभव समेटे हुये आज के बुजुर्ग अपना ज्ञान साझा करना चाहते हैं। वो ज्ञान जो उन्होने ठोकरें खा खा कर प्राप्त किये। किन्तु उसे लेने वाला ही कोई नहीं आज की पीढ़ी में। कंपनी ने तो उन्हे सेवानिवृत्ति दी ही, बच्चों ने भी दे दी।

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